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Showing posts from December 12, 2010

यात्रा करो अनंत मन की

           इन्सान दिन- रात अपनी इच्छाओ की पूर्ति मै व्यसस्त रहता है ! अपने मतलब के लिए कही हाथ जोड़ता है और कही बाहें फेलता है ! लेकिन संसार मै न्याय से अन्याय , सम्मान से अपमान , ख़ुशी से दुखी होकर दुनिया का वैभव इकठा किया जा सकता है पर परमात्मा की कृपा नहीं पाई जा सकती ! जब तक भगवान की कृपा नहीं होगी तब तक वैभव के शिखर पर बैठ कर भी इन्सान की आँखों से आंसू ही झरते रहते हैं !जब भगवान की कृपा होती है तब आप जंगल मै रहो या वीराने मै हर जगह खुशियाली साथ रहती है सम्पुरण संतुष्टि प्रकृति मै या माया मै नहीं होती थोड़ी देर के लिए तो लगता है की सब कुच्छ मिल गया लेकिन कुच्छ देर बाद ही लगता है की अभी बहुत पाना बाक़ी है ! इन्सान प्रेम की अभिलाषा मै बहुत सारे रिश्ते बनाता है लेकिन प्रेम भी पूरा नहीं होता ! भटकाव तो सभी के जीवन मै आता है लेकिन एसा महसूस  होता है की थोड़ी दूर और चलु शायद कहीं शांति , विश्राम ,या चैन मिल जाये !        टेगोर ने कहा था -------मै हर रोज़ सुख के घर का पता मालूम करता हु लेकिन हर शाम को फिर भूल जाता हु ! सुबह से रोज़ शुरू करता हु लेकिन शाम तक अँधेरे के सिवा कुच्छ प्राप्त न

loktantrik desh

भावनाओं को आहत करना ; आशाओं को निराशा में बदलना ; बढ़ने वाले क़दमों को रोकना ; मेहनत करने वाले हाथों को काटना ; मासूमों को फाँसी पर चढ़ा  देना; दुल्हनों के सुहाग को वैधव्य में पलटना ; ये सब हो रहा है उस देश में जिसे कहते है           '' लोकतान्त्रिक देश ''