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Showing posts from March 1, 2010

लो क सं घ र्ष !: कारागार से कविता : मेरा प्यारा हिन्दुस्तान

मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान हिन्दू-मुस्लिम आंखें इसकी, आर्या का दिल गंगा-यमुना बहते-बहते, जहां पर जाते मिल तरह-तरह के बूटे-पौधे, भांति-भांति इंसान मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान। काशी जैसी सुबह मिले है, अवध के जैसी शाम हर कोई को लुत्फ मिले है, खास हो चाहे आम हरियाणा हो या दिल्ली, यू0पी0 चाहे राजस्थान मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान। इल्म व हुनर का गह्वारा है, प्यार सी प्यारी धरती है वलियों ऋषियों मुनियों की, बसती यहां पर बस्ती है मोड़-मोड़ पर भजन-कीर्तन, गली-गली अज़-आन मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान। कुछ दिन पहले नम थी आंखें, रंज व अलम था छाया चारों तरफ कोहराम मचा था, दहशत का था साया मक्कारी से काबिज था गोरा, मलैच्छ शैतान मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान। टीपू ने फुंकार भरी, तो अहल-ए-वतन ललकारे शेख अज़ीज भी फतवे से गोरों से धिक्कारे गरम किया था दिलवालों ने शामली मैदान मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, प्यारा-प्यारा हिन्दुस्तान। चन्द्रशेखर, बिस्मिल, मदनी और बढ़े आजाद गली-गली ललकारा उनको, जनता से की फरि