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Showing posts from May 31, 2009

प्रतिभा सिंह के लिए भोजपुरी आइटम सांग लिखा अभिज्ञात ने

कोलकाताः साहित्य में गंभीर सरोकार वाली रचनाओं के लिए विशेष तौर पर ख्यात लेखक-पत्रकार अभिज्ञात ने प्रतिभा सिंह के लिए भोजपुरी में आइटम सांग लिखा है। प्रतिभा सिंह के भोजपुरी एल्बम 'मेहरारू ना पइब' में उनके लिखे गीत 'केश बा हमरो नागिन एस जनमरवा गड़हा गाल के।रूप फेल हम कइले बानी कश्मीर और बंगाल के ' पर बाकायदा एक बंगाली बाला ने आइटम डांस किया है। अभिज्ञात से ऐसा गीत प्रतिभा सिंह ही लिखवा सकती थीं। उसका एक खास कारण तो यही है कि वे न सिर्फ अभिज्ञात के दिल की मालकिन हैं बल्कि उनके घर की भी। जी हां अभिज्ञात जिस घर में रहते हैं वह प्रतिभा सिंह का है। और बहुत कम लोग जानते हैं कि भोजपुरी की मशहूर गायिका प्रतिभा सिंह उनकी पत्नी हैं। प्रतिभा सिंह के गालों के डिम्पल पर गीत लिखने की ड्यूटी तो अभिज्ञात बजा ही सकते हैं। अभिज्ञात का कहना है आइटम सांग तो गुलजार जैसों ने भी लिखे हैं मैं क्या चीज़ हूं।

लोकसंघर्ष !: छद्म पूँजीवाद बनाम वास्तविक पूँजी-5

आप ने अगर छद्म पूँजी बनाम वास्तविक पूँजी - १ , छद्म पूँजी बनाम वास्तविक पूँजी- २ , छद्म पूँजी बनाम वास्तविक पूँजी- ३ , छद्म पूँजीवाद बनाम वास्तविक पूँजी - ४ नही पढ़ा है तो उन पर क्लिक करें । छद्म पूँजी बनाम उत्पादक पूँजी सन 2005-08 के दौरान अमेरिका में वित्तीय संस्थाओ की क्रियाशीलता बेहद बढ़ गई । संपत्ति बाजार में पैसा लगाया जाने लगा । संपत्ति की कीमतों में पागलपन की हद तक वृधि हुई । लोग और कंपनिया अंधाधुंध कर्जे लेने और देने लगे। कंपनियों ने अपनी मूल पूँजी के 25-30 गुना अधिक पूँजी कर्ज पर लेकर निवेश करना आरम्भ किया। अमेरिका के वित्तीय केन्द्र तथा सबसे बड़े स्टॉक बाजार ''वाल स्ट्रीट '' तथा अमेरिका की विशालतम चार सबसे बड़ी वित्तीय संस्थाओ ने अकूत पैमाने पर शेयर बाजार,प्रतिभूति बाजार ,गिरवी बाजार इत्यादि में भारी पैमाने पर पूँजी लगा दी । उधर उत्पादक उद्यम और उत्पादक पूँजी अपेक्षित कर दी गई। ऐसे में वित्तीय अर्थव्यवस्था के ''बैलून'' को कभी न कभी फूटना ही था। इस बार ''अति उत्पादन '' का संकट उतना स्पष्ट नही

लोकसंघर्ष !: माँ

जब छोटा था तब माँ की शैया गीली करता था। अब बड़ा हुआ तो माँ की आँखें गीली करता हूँ ॥ माँ पहले जब आंसू आते थे तब तुम याद आती थी। आज तुम याद आती हो....... तो पलकों से आंसू छलकते है....... ॥ जिन बेटो के जन्म पर माँ -बाप ने हँसी खुशी मिठाई बांटी । वही बेटे जवान होकर आज माँ-बाप को बांटे ...... ॥ लड़की घर छोडे और अब लड़का मुहँ मोडे ........... । माँ-बाप की करुण आँखों में बिखरे हुए ख्वाबो की माला टूटे ॥ चार वर्ष का तेर लाडला ,रखे तेरे प्रेम की आस। साथ साल के तेरे माँ-बाप क्यों न रखे प्रेम की प्यास ? जिस मुन्ने को माँ-बाप बोलना सिखाएं ......... । वही मुन्ना माँ-बाप को बड़ा होकर चुप कराए ॥ पत्नी पसंद से मिल सकती है .......... माँ पुण्य से ही मिलती है । पसंद से मिलने वाली के लिए,पुण्य से मिलने वाली माँ को मत ठुकराना....... ॥ अपने पाँच बेटे जिसे लगे नही भारी ......... वह है माँ । बेटो की पाँच थालियों में क्यों अपने लिए ढूंढें दाना ॥ माँ-बाप की आँखों से आए आंसू गवाह है। एक दिन तुझे भी ये सब सहना है॥ घर की देवी को छोड़ मूर्ख । पत्थर पर चुनरी ओढ़ने क्यों जन है.... ॥ जीवन की संध्या में आज तू उसके साथ

बच्चों पर भारी कश की लत

भो पाल. सिगरेट के कश लेने में अब बच्चे भी पीछे नहीं हैं। 80 फीसदी बच्चे 18 साल की उम्र पूरी होने के पहले सिगरेट पीना शुरू कर देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार बच्चों में सिगरेट पीने की प्रवृत्ति उनके अभिभावकों की आदतों से पनपती है। मनोचिकित्सकों के मुताबिक जिन बच्चों के परिवार में खुलेआम सिगरेट पीने, तंबाकू खाने का चलन है उन परिवारों के बच्चों के दिमाग का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता। इसके चलते बच्चे अपने अभिभावकों की प्रत्येक अच्छी और बुरी आदत जल्द ही अपना लेते हैं। अभिभावकों की यही स्मोकिंग की आदत बच्चे को सिगरेट पीना सिखा देती है। शहर में पहचाने गए कैंसर रोगियों में कम उम्र में सिगरेट का नशा करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। डॉक्टरों के अनुसार कम उम्र में सिगरेट, तंबाकू का शौक करने वाले बच्चों को मुंह का कैंसर, गले का कैंसर जल्दी हो जाता है। पापा का घर में सिगरेट पीना लगता है बुरा शक्ति नगर निवासी मुकेश श्रीवास्तव के 14 वर्षीय पुत्र आयुष को पापा का घर में सिगरेट पीना बुरा लगता है। आयुष ने बताया कि पापा जब भी सिगरेट पीते हैं तो मैं उनसे नाराज हो जाता

अनुशासन हीन क्यों है पीढी ????

उछाले गये प्रश्न,  अनुशासन हीन क्यों है आ्ज की पीढी ? क्यों हें दूरियां,द्वन्द्व,अन्तर्द्वन्द्व- बच्चों व माता पिता में ? चुनते रहे पत्तियां, बच्चों पर हैं बडे दबाव,पढाई के ,ट्यूशन के, मां-बाप की आकान्क्षाओं के । ब्च्चों से सीखें मां- बाप, बच्चों को गुरू मानकर। ्बच्चों को सिर्फ़ पैसे सुविधा नहीं, अपना समय भी दें,मित्र बनें,पूरी बात सुनें ,समझें । बच्चे भी मां बाप की सुनने की बजाय , अपनी ही तानते हैं; ्टीचर व दोस्तों कि अधिक मानते हैं, टी. वी.,सिनेमा,इन्टर्नेट को अधिक पहचानते हैं । कौन जा पाया जड में -- आरहा है देश में, अवान्छित धन, योरोप,अमेरिका के जुआघरों, चकलाघरों,नन्गे नाच के क्लबों, आतन्क्बाद्व व ् निरीहों पर अत्याचार व- शस्त्रों की होड के पोषण के लिये, हथियारों की बिक्री की कमाई का । कभी बिकास के नाम पर,सहायता व कर्ज़, एवम एन.जी.ओ. प्रोजेक्ट या-- बहुराश्ट्रीय कम्पनियों ्के बिकास में लिप्त- हमें, मोटी-मोटी आमदनी, पे-पर्क्स, के रूप में । ""जैसा खायें अन्न, वैसा होगा मन। ""

संडे स्पेशल - टुकड़ों में पाकिस्तान समस्या का समाधान

एक समस्या पाकिस्तान की फौज को लेकर है जिसने पिछले दो दशक के दौरान एक ‘वैचारिक’ बाना धारण कर लिया है। इसकी शुरुआत जिया उल हक के जमाने में हुई थी जब धीरे-धीरे सेना का इस्लामी करण किया जाने लगा। सामयिक x गुरचरन दास पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत में तालिबान के खिलाफ पाकिस्तानी फौज की सफलता के बावजूद वहां स्थिति गंभीर बनी हुई है। मेरे एक पाकिस्तानी मित्र ने बताया कि इलाके के सम्पन्न लोग स्थिति के और भी बदतर होने से पहले ही इलाका छोड़ देना चाहते हैं। पाकिस्तान लंबे अर्से से अपने यहां तालिबान की उपस्थिति से इनकार करता आया है। अब अमेरिका के दबाव में आकर अंतत: उसने कार्रवाई शुरू की है। पाकिस्तान स्वयं में एक बहुत बड़ी समस्या है और मुझे लगता है कि बड़ी समस्या को छोटे-छोटे टुकड़ों मंे बांटकर देखना कहीं आसान होगा। मैं पाकिस्तान नामक बड़ी समस्या को चार छोटी-छोटी समस्याओं - तालिबान, पाकिस्तानी फौज, कश्मीर और उपमहाद्वीप में स्थाई शांति के रूप में बांटता हूं। सबसे पहले तालिबान से शुरुआत करते हैं। अफगानिस्तान में अफीम की खेती तालिबान के लिए धनराशि जुटाने का बड़ा स्रोत है। आखिर इसका समाधान क्य