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Showing posts from April 10, 2009

Loksangharsha: ग़ज़ल

Loksangharsha: ग़ज़ल ग़ज़ल बाजार के लिए न खरीदार के लिए । मेरा वजूद सिर्फ़ है ईसार के लिए । अब कुछ तो काम आए तेरे प्यार के लिए । वरना ये जिंदगानी है बेकार के लिए। माथे पे जो शिकन है मेरे दिल की बात पर काफी है ये इशारा समझदार के लिए । मिलने का उनका वादा जो अगले जनम का है ये भी बहुत है हसरते दीदार के लिए । रातों के हक में आए उजालो के फैसले सूरज तड़पता रह गया मिनसार के लिए । इल्मो अदब तो देन है भगवान की मगर लाजिम है हुस्ने फिक्र भी फनकार के लिए। दस्ते तलब बढ़ाना तो कैसा हुजूरे दोस्त लव ही न हिल सके मेरे इजहार के लिए कुछ बात हो तो उसका तदासक करें कोई जिद पर अडे हुए है वो बेकार के लिए। दुनिया के साथ साथ मिले स्वर्ग में सुकूँ क्या क्या नही है हक के तलबगार के लिए। राही जो ख़ुद पे नाज करे भी तो क्या करे 'राही' तो मुश्ते ख़ाक है संसार के लिए । ------------------डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '
सभी ब्लाॅग दर्शको को मेरा नमस्कार मैं निहारिका श्रीवास्तव जीवाजी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एंव जनसंचार विभाग की द्वितीय वर्ष की छात्रा हूँ। हमारे स्नानोकत्तर के चतुर्थ सत्र में एक लघु शोध पत्र तैयार करना होता है। जिसके सन्दर्भ मे हमें जानकारी एकत्रित करनी होती है। मेरे शोध पत्र का विषय है। विषय ------- बेव पत्रकारिता का बिकास एंव संभावनाये। इसे तैयार करने के लिए मुझे कुछ प्रश्नों के उत्तर भी चाहिए होगें। जो मेरे शोध पत्र को तैयार करने में सहायक शिद्ध होगें। प्रश्न निम्न प्रकार है। प्रश्न -- ई न्यूज पेपर क्या है ? प्रश्न -- पोर्टल क्या है ? प्रश्न -- डाॅट इन , डाॅट काम , डाॅट ओ . आर . जी . तथा अन्य सबंधित शब्दों के अर्थ एवं बेव पत्रकारिता में उनकी भूमिका ? प्रश्न -- भारत में बेव पत्रकारिता का प्रचलन कैसा है एंव मुख पोर्टल

कोई तो देखे हमारी ओर का शेष

चलो अब आपको आगे के सफर का बाकया सुनाते हैं। जैसे तैसे भिण्ड़ तो पहुच गये लेकिन इन लड़को ने तो यहाँ की सड़को पर भी हमारा पीछा नहीं छोड़ा। अब घर पहुँचने के लिए टेम्पों से , स्टेशन से मार्केट का रास्ता तो तय करना ही था सो हमारे टेम्पों ने भी कच्ची सडक का रास्ता पारकर मुख्य सड़क की ओर अपने रूख कर लिया। अरे ये क्या मैं तो सोच रही थी कि करीब 60-70 लड़के ही रहें होगें लेकिन यहाँ तो लडकों का हूजूम देखकर मेरी आखें ही चोंधिया गई। इन्हें देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सड़क पर लड . को का सैलाब उमड़ पड़ा हो। अब भिण्ड की टूटी फूटी ओर सकरी सड़के उस पर लड़को का रास्ता घेरकर चलने ने टेम्पूओं के लिए दस कदम की दूरी तय करना भी पहाड़ पार करने जितना मुश्किल बना दिया था। सभी लड़के पैदल थे ऊपर से रास्ते की रूकाबटो ने टेम्पूओं की चाल को तो धीमा कर ही दिया था सो सभी लड़के टेम्पूओं पर लटक लटक कर अपना रास्ता तय कर रहे थे। अब प्रत्येक टेम्पों पर 8-10

कोई तो देखों हमारी और

अनायास ही मन छोटे शहरों की अव्यवस्थाओं को देखकर अक्सर व्यथित हो जाता है।फिर बात अपने गृहनगर की हो तो टीस तो उठती ही है। जब भी अपने गृहनगर भिण्ड़ जाती तो कुछ न कुछ ऐसा देखती हूँ जो मन को दुखी कर देता है। चलो आज आपको अपने ग्वालियर शहर से भिण्ड़ की यात्रा का वर्णन सुनाती हूँ। धटना थोड़ी पुरानी है लेकिन सफर की अव्यवस्थाये अपना चोला कभी नहीं बदलती। बात जनवरी माह के अन्तिम सप्ताह की है। जब में किसी की शादी मैं सरीक होने अपने गृहनगर जा रही थी बड़े उत्साहित मन से हम टिकिट खरीद ट्रेन मै जाकर बैठ गये टिकिट खिड़की पर ज्यादा भीड़ भी नही थी इसलिए कोई परेशानी भी नही हुई। मन मैं अलग अलग ख्यालों को लेकर मैं अपने घर और हमारी ट्रेन अपने अगले स्टेशन की ओर चल दी। अरे ये क्या कुछ पल बितते ही ग्वालियर का अगला स्टेशन बिड़ला नगर आ गया। स्टेशन पर होते शोर ने बिचारो की तन्द्रा को तोड़ दिया। अब चलाए मान मन कंहा एक जगह टिक सकता है तो अपनी जिज

जिंदल पर चला जूता

नेताओं पर जूता फेंकने की घटना में इजाफा होता जा रहा है पत्रकार जरनैल सिंह  द्वारा  गृहमंत्री पी चिदंबरम  पर जूता  फेकने के बाद अब कांग्रेसी सांसद नवीन जिंदल को भी एक फ्लाईंग जूते का सामना करना पडा.आज कुरुक्षेत्र में एक चुनावी रैली के दौरान एक रिटायर्ड स्कूल प्रिंसिपल ने नवीन जिंदल को निशाना लगाकर जूता फेंका।   सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक  कांग्रेसी नेताओं, उनके वादों और कांग्रेस की नीतियों से नाराज होकर  रिटायर्ड प्रिंसिपल राजपाल ने  नाराजगी जताते हुए कुरुक्षेत्र से कांग्रेस के सांसद नवीन जिंदल पर भरी चुनावी सभा के दौरान उनपर जूता फेंका, लेकिन निशाना चूक गया और जूता नवीन जिंदल को नहीं लगा.हालांकि कांग्रेस का दावा है कि वह शराब के नशे में थे और इस घटना के पीछे विरोधियों का हाथ है। फिलहाल राजपाल को पुलिस ने हिरासत में  लिया ओए पुछ्ताछ के बाद छोड़ दिया    सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

हिन्‍दुत्‍व अथवा हिन्‍दू धर्म

हिन्दुत्व को प्राचीन काल में सनातन धर्म कहा जाता था। हिन्दुओं के धर्म के मूल तत्त्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान आदि हैं जिनका शाश्वत महत्त्व है। अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था। इस प्रकार हिन्दुत्व सनातन धर्म के रूप में सभी धर्मों का मूलाधार है क्योंकि सभी धर्म-सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था। मान्य ज्ञान जिसे विज्ञान कहा जाता है प्रत्येक वस्तु या विचार का गहन मूल्यांकन कर रहा है और इस प्रक्रिया में अनेक विश्वास, मत, आस्था और सिद्धान्त धराशायी हो रहे हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आघातों से हिन्दुत्व को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसके मौलिक सिद्धान्तों का तार्किक आधार तथा शाश्वत प्रभाव है। आर्य समाज जैसे कुछ संगठनों ने हिन्दुत्व को आर्य धर्म कहा है और वे चाहते हैं कि हिन्दुओं को आर्य कहा जाय। वस्तुत: 'आर्य' शब्द किसी प्रजाति का द्योतक नहीं है। इसका अर्थ केवल श्रेष्ठ है और बौद्ध धर्म के चार आर्

काम और दर्द का रिश्ता

अगर आप पीठ के भीषण दर्द से गुजर रहे हैं और हर रोज घर लौटने पर अपने जीवनसाथी से दर्द निवारक मरहम लगाने को कहते हैं, तो किसी आथरेपेडिक डॉक्टर के पास जाने से पहले स्वयं जांच कर लें कि क्या आप अपने कार्यस्थल से खुश और संतुष्ट हैं? यही नहीं, इस संदर्भ में बैठने के लिहाज से असुविधाजनक कुर्सी देने के लिए अपने ऑफिस मैनेजर को दोष देने की जरूरत भी नहीं है। यद्यपि पीठ दर्द की यह एक प्रमुख वजह हो सकती है, लेकिन क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी का नया शोध इस क्रम में कुछ अचंभित करने वाली बातों पर प्रकाश डालता है। इसके मुताबिक आपसे कुछ ज्यादा की मांग रखने वाले, किंतु कम नियंत्रण वाले कार्यालय में या असहयोगी रवैया अपनाने वाले प्रबंधन के साथ काम करने वाले कर्मचारी ‘बायोसाइकोसोशल’ कारण के चलते पीठ दर्द के अधिक शिकार होते हैं। बायोसाइकोसोशल मॉडल के तहत जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारणों के आधार पर बीमारी की पहचान की जाती है। इस शोध को अंजाम देने वाले निक पेनी के मुताबिक अब उक्त मॉडल को मानव स्वास्थ्य, उसमें भी खासतौर पर दर्द के क्रम में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस शोध से पता चलता है कि कर्मचारियों को होने

पाक ..... साफ़ ..... पडोशी ....

पाकिस्तान में आतंकवाद का एक इतिहास रहा है . सोवियत संघ सेना ने जिन दिनों अफगानिस्तान में नाजायज घुसपैठ कर रखी थी , उन्हीं दिनों में पाकिस्तान में लड़ाकू और कट्टरवादी संगठनों का सबसे ज्यादा विस्तार हुआ था। इसमें पाकिस्तान , अमेरिका व सऊदी अरब की बहुत नजदीकी साझेदारी रही थी। इसी दौरान अमेरिका और पाकिस्तान के मुख्य गुप्तचर संगठनों ( सीआईए और आईएसआई ) में इतने करीबी रिश्ते बन गए , जो बाद में भी कई अप्रत्याशित रूपों में सामने आए। बाद में पश्चिमी देशों ने जहां अपने लिए ख़तरनाक सिद्ध होने वाले आतंकवादियों की धरपकड़ के लिए पाकिस्तान पर बहुत जोर बनाया , वहीं भारत के लिए खतरनाक माने जाने वाले आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई पर कम ध्यान दिया। इसी कारण अमेरिका के नेतृत्व में आतंकवाद विरोधी युद्ध

आईना ....

आईना देखो । सच्चाई दिखेगी । झूठे ख्वाब टूट जायेगे । हकीकत सामने आ जायेगी । जिंदगी का मकसद मालूम हो जाएगा । सारी हसरतें पुरी हो जायेगी ।

एक मासूम लड़की का आखिरी ख़त अपने माँ के नाम...उसने क्या क्या नहीं सहा आखिर एड्स ने उसकी जिंदगी तबाह कर दी और बह 12th पास नहीं कर पायी

आज आप लोगों को एक बात बता दूं की की जिस लड़की ने कल आत्महत्या की उससे मैं बहुत प्यार करता था लेकिन वो मुझे नहीं मैंने उसे एक बार बताया की मैं उससे प्यार करता हूँ तो उसने इनकार कर दिया क्योंकि बह तब सिर्फ 16 साल की थी और पड़ने वाली थी ! मैं उसे भूल चुका था लेकिन कल जब यह खबर मेरे कानों मे पड़ी तो दिल रो पड़ा और सोचने पर मजबूर हो गया की बह लड़की ऐसा कर सकती है और क्या इतना कुछ उसके साथ हो सकता है जिसकी दुनिया सिर्फ किताबो तक थी! इतनी छोटी सी उम्र मे इतना बड़ा कदम,आखिर क्या हो रहा है यह !ये सवाल हर बच्चे से जो अपने सपनो की चाहत मे अपने माता-पिता का दिल और उनके अरमानो को चूर-चूर करते नजर आ रहे है !!ये ही बारदात को पेश करती हिन्दुस्तान का दर्द की एक ख़ास रिपोर्ट!! ऐसी ही लड़की का एक आखिरी ख़त अपनी माँ के नाम माँ................ माँ मैं आपसे और पापा से बहुत प्यार करती हूँ और आप लोगों को छोड़कर जाने का दिल भी नहीं करता पर क्या करूँ हालत ही कुछ ऐसे हो गए है की मुझे जाना पड़ेगा !माँ मैंने आपसे एक बात छुपायी थी जो अब बताने जा रही हूँ ,वो ये की माँ मैं एक लड़के से बहुत प्यार करती थी ,और मुझे लगता था

कुलदीप शर्मा जी का लेख

कुलदीप शर्मा दैनिक भास्कर और नई दुनिया में काम कर चुके कुलदीप शर्मा भोपाल में रहकर अब स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखन करते हैं। फिलहाल पिछले 60 साल की राजनीति पर पुस्तक लेखन में व्यस्त. संपर्क- kalkshepee@gmail.com मोबाइल-9424505136 इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद वर्ष 1985 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद कांगे्रस को पूरे देष में न सिर्फ जबर्दस्त बल्कि ऐतिहासिक सफलता मिली और भाजपा को केवल दो सीटों से संतोष करना पड़ा। इतना ही नहीं उस चुनाव में पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष अटलबिहारी वाजपेयी स्वयं ग्वालियर से माधवराव सिंधिया से चुनाव हार गए। उस समय मैं काॅलेज में था और छात्र राजनीति में सक्रिय भी था। जोष ही जोष में अटलबिहारी वाजपेयी को एक लंबा पत्र 19 मार्च 1985 को लिखा कि आपकी पार्टी की ऐसी दुर्दषा क्यों हुई। इस पत्र को लिखकर मैं इस घटना को भूल सा गया कि करीब दो महीने बाद अचानक एक दिन अटलबिहारी वाजपेयी लिखा लिफाफा मिला। मैंने अपने पत्र में जो मुद्दे उठाए थे, एक नेता की तरह उन सभी का जवाब उन्होंने दे दिया था, लेकिन बाद के समय में अपनी नीतियों में व्यापक परिवर्तन भी किया। मेरे द्वारा उठाए गए सभी मुद्

लम्हों ने कुछ खता की है....!!

लम्हे वक्त की धरती पर लम्हों के निशाँ कभी नहीं बनते !! लम्हे तो वैसे ही होते हैं जैसे समंदर की छाती पर अलबेली-अलमस्त लहरें शोर तो बहुत करती आती हैं मगर अगले ही पल सब कुछ ख़त्म !! आदमी आदमी बोलता बहुत है सच बताऊँ !! आदमी अपनी बोली में झगड़ता बहुत है !! सुख सुख पेड़ की मीठी छावं है मगर मिलती है वह धरती के बहुत गहरे से जड़-तना-डाली-पत्ते बनकर बहुत बरसों बाद !! चूहा आदमी !! एक बहुत बड़ा चूहा है जो खाता रहता है दिन और रात धरती को कुतर - कुतर रेपिस्ट आदमी !! एक बहुत बड़ा रेपिस्ट है जो करता है हर इक पल धरती का स्वत्व - हरण और देता है उसे अपना गन्दा और दुर्गंधमय अवशिष्ट - अपशिष्ट !! .............!! आदमी के अवशिष्ट से कुम्भला और पथरा गई है धरती और आदमी सोचता है कि वही महान है !! ................!! आदमी !!.... सचमुच ...... है तो बड़ा ही महान और उसकी महानता बिखरी पड़ी है धरती के चप्पे - चप्पे पर .....!! और बढती ही चली जा रही