विगत दिनों केन्द्र और कई राज्य सरकारों के भ्रष्टाचार और घपले-घोटालों का खुलासा होने से आम जनता व्यथित और आक्रोशित थी। यद्यपि संसद से लेकर सड़क तक इसके खिलाफ अनेक अभियान चल रहे थे लेकिन वामपंथी दलों को छोड़ अन्य अभियान चलाने वालों की विश्सनीयता जनता के बीच संदिग्ध थी। ऐसे में एक गैर राजनीतिक मंच से शुरू हुए आन्दोलन के प्रति जनता के कतिपय हिस्सों का लगाव स्वाभाविक था और जनता को उम्मीद जगी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक जंग शुरू हो चुकी है। लेकिन अन्ना हजारे और भारत की पूंजीवाद सरकार में लोकपाल कानून पर नागरिक समाज (सिविल सोसाईटी) और केन्द्र सरकार में कांग्रेस पार्टी के मंत्रियों की एक समिति गठित करने पर अंततः सहमति बन गयी। पूंजीवादी समाचार माध्यमों ने घोषणा कर दी है, ”जनता जीत गयी है“, ”इंडिया जीत गया है“ आदि-आदि। कुछ ऐसा दिखाने की कोशिश की जा रही है कि आज से भ्रष्टाचार हिन्दुस्तान में समाप्त हो जायेगा। यह भी दर्शाया जा रहा है कि जन लोकपाल कानून ऐसा कानून होगा जिसमें भ्रष्टाचार से निपटने की सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान शक्तियां सन्निहित होंगी। अगर ऐसा हो पाता है त