सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ हिन्दी-हास्य जगत को फ़िर से आज बहाना है आँसू। सूनापन बढ़ गया हास्य में चला गया है कवि धाँसू ।। ऊपरवाला दुनिया के गम देख हो गया क्या हैरां? नीचेवालों को ले जाकर दुनिया को करता वीरां।। शायद उस से माँग-माँगकर हमने उसे रुला डाला । अल्हड औ' आदित्य बुलाये उसने कर गड़बड़ झाला।। इन लोगों से तुम्हीं बचाओ, इन्हें हँसाया-मुझे हँसाओ। दुनियावालों इन्हें पढो हँस, इनसे सदा प्रेरणा पाओ।। ज़हर ज़िन्दगी का पीकर भी जैसे ये थे रहे हँसाते। नीलकंठ बन दर्द मौन पी, क्यों न आज तुम हँसी लुटाते? भाई अल्हड बीकानेरी के निधन पर दिव्य नर्मदा परिवार शोक में सहभागी है-सं.