विनय बिहारी सिंह कुछ मित्रों ने रमण महर्षि पर लिखे मेरे लेख पर टिप्पणी की है, कुछ फोन भी आए हैं। सबका कहना है कि आजकल ढोंगी साधु इतने हो गए हैं कि अब साधु- संतों से घिन आने लगी है। हां मित्रों, यह सच है कि नकली या कहें इंद्रिय लोलुप या भेड़िए साधु के रूप में खूब मिल जाएंगे। आजकल जहां देखिए वही वही नजर आ रहे हैं। लेकिन इस वजह से क्या हम उन संतों को भूल जाएं जिन्होंने इस पृथ्वी को पवित्र किया है? हां, रमण महर्षि ऐसे ही संत थे। ऐसे संतों के बारे में दुबारा- तिबारा पढ़ कर कई चीजें दिमाग में कौंधती हैं, जो एक तरह से अच्छी बात कही जाएगी। एक तो साधना करने वाले दिखाते- बताते नहीं हैं कि वे बहुत पहुंचे हुए संत हैं। दूसरे रबड़ी- मलाई के लिए वे लोलुप व्यक्ति की तरह चक्कर नहीं लगाते रहते। वे धन के लिए चंदा या कपड़ा या और कुछ नहीं मांगते। सच्चे संतों के बारे में मैंने जो भी अध्ययन किया है, उससे यही निकला है कि संत तो जन कोलाहल से दूर कहीं किसी गुफा में या एकांत में बैठ कर साधना करते हैं और उन्हें संसार से कुछ भी नहीं चाहिए। कोई भी इच्छा, मैं फिर से दुहरा रहा हूं- कोई भी इच्छा उनके मन में नहीं होती