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Showing posts from April 8, 2009

मुझे बीवी से बचाओ !!

आपने भारतीय दंड संहिता की धारा 498a / घरेलू हिंसा अधिनियम तो ज़रूर सुना होगा आईये मैं बताता हूँ कि हमारे देश में इसका किस तरह दुरूपयोग हो रहा है | यह कानून आप के लिए किस क़दर खतरनाक है और आप किस प्रकार खतरे में है और यह समाज के लिए कितना घातक है -- आपकी पत्नी द्वारा पास के पुलिस स्टेशन पर 498a दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक लिखित झूठी शिकायत करती है तो आप, आपके बुढे माँ- बाप और रिश्तेदार फ़ौरन ही बिना किसी विवेचना के गिरफ्तार कर लिए जायेंगे और गैर-जमानती टर्म्स में जेल में डाल दिए जायेंगे भले चाहे की गई शिकायत फर्जी और झूठी ही क्यूँ न हो!  आप शायेद उस गलती की सज़ा पा जायेंगे जो आपने की ही नही और आप अपने आपको निर्दोष भी साबित नही कर पाएँगे और अगर आपने अपने आपको निर्दोष साबित कर भी लिया तब तक शायेद आप आप न रह सके बल्कि समाज में एक जेल याफ्ता मुजरिम कहलायेंगे और आप का परिवार समाज की नज़र में क्या होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते है| 498a दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम को केवल आपकी पत्नी या उसके सम्बन्धियों के द्वारा ही निष्प्रभावी किया जा सकता है आपकी पत्नी की शिकायत पर आपका

बीत गए बरसों

आज कल परसों बीत गए बरसों उनसे मिले हुए वो अक्‍सर कहते थे चलेंगे साथ उम्रभर यूं ही डालकर इक दूजे के हाथों में हाथ

कुण्डली --आचार्य संजीव 'सलिल'

इधर चुनाव उधर क्रिकेट, दो-दो देखो मैच। कौन कहाँ पर ड्राप हो, कौन कहाँ पर कैच? कौन कहाँ पर कैच, फैसला दे एम्पायर। जो जीते हो हीरो, हारा हो वैम्पायर। कहे 'सलिल' कविराय बजाओ जी भर ताली। कुछ भी करो न काम व्यवस्था को दो गाली।

साथी का हाथ पकड़ कर चलना भरोसे का प्रतिक और विश्वास का नाम है ......

पार्क में देखा.... पति पत्नी एक दुसरे का हाथ पकड़कर चल रहे थे । डेली का उनका रूटीन था । जान पहचान वाले थे । एक दिन उनके घर जाने पर कारण पूछ ही लिया । पत्नी बोली ...साथी का हाथ पकड़ कर चलना भरोसे का प्रतिक और विश्वास का नाम है । यह हम दोनों को हमसफ़र होने की याद दिलाता है ।

सीख ले अब तो कुछ....

सारांश यहाँ ... जरनैल का जूता एक साथ बहुत कुछ कह .गया...!हमारे चारों और जो घटित हो रहा है...उसकी कहानी कह गया!अब दुनिया बहुत छोटी हो गई है..!एक मामूली सी घटना थोडी देर में पूरे विशव में फ़ैल जाती है..!बुश पर जूता पड़ते सारी दुनिया ने देखा..लेकिन नेताओं ने इससे सबक लेना उचित नहीं समझा..!ये तो बोलना जानते है..सुनना कहाँ पसंद है इनको..?तो लो खाओ जूते...!नेता लोग एक अलग जाती होती है...पार्टी चाहे कोई हो इनका खून एक है ..तभी तो हर पार्टी में ये झट से एडजस्ट हो जाते है...इनके ब्लड ग्रुप वाली कोई समस्या नहीं ...है..!ये खून करे या दंगे करें या कुछ भी करे ..अवल्ल तो जेल जाते नहीं और चले भी जाएँ तो जल्दी वापिस भी आ जाते है...!जबकि एक आम आदमी को traffik नियम तोड़ने जैसे अपराध में भी इतना .शर्मिन्दा होना पड़ता है की क्या बताएं...?बड़े अपराध में तो जाने क्या होगा? जबकि नेताओं को देखिये...कुछ भी अनाप सनाप बोले जा रहें है..!सब .चुपचाप सुनते जा रहे है....!.देखिये वरुण गांधी को,देखिये लालू जी को ,देखिये रामविलास और मुलायम को...हुआ किसी को कुछ....अब आम आदमी क्या करे ...सुनता रहे इनकी बकवास....क्यूँ? इस sa

Loksangharsha: सौ में सत्तर आदमी...

Loksangharsha: सौ में सत्तर आदमी... सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है दिल पे रखकर हाथ कहिये देश क्या आजाद है। सौ में सत्तर ... कोठियों से मुल्क के मेयार को मत आंकिये असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है । सौ में सत्तर आदमी .... सत्ताधारी लड़ पड़े है आज कुत्तों की तरह सूखी रोटी देखकर हम मुफ्लिसों के हाथ mein ! सौ में सत्तर आदमी ... जो मिटा पाया न अब तक भूख के अवसाद को दफन कर दो आज उस मफ्लूश पूंजीवाद को । सौ में सत्तर आदमी... बुढा बरगद साक्षी है गावं की चौपाल पर रमसुदी की झोपडी भी ढह गई चौपाल में । सौ में सत्तर आदमी ... जिस शहर के मुन्तजिम अंधे हों जलवामाह के उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है । सौ में सत्तर आदमी ... जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में रोशनी वो गांव तक पहुँचेगी कितने साल में । सौ में सत्तर आदमी ... ---------------अदम गोंडवी

सबको शिक्षा से आएगा बदलाव

महमूद मदनी ये देश एक ऐसा देश है कि पूरी दुनिया में इसके जैसा कोई दूसरा आपको नहीं मिलेगा। एक ऐसा देश जहां इतनी सारी भाषाएं, धर्म, जातियां, कल्चर और भी बहुत सारी चीजें हैं। जनरल इलेक्शन से अगले 5 सालों के लिए लोगों की तकदीर का फैसला होगा। और उस 5 साल की सरकार का असर सिर्फ 5 सालों तक ही नहीं होता बल्कि अगर गलत नीतियां हों तो अगले कई सालों तक हमें उसके प्रभावों के बर्दाश्त करना पड़ता है। ये हमारे देश के भविष्य का सवाल है। पिछले 60 सालों में एक ऐसा वातावरण क्रिएट कर दिया गया है कि मुसलमान और हिंदू अलग रहें। हम एक दूसरे की परेशानियां सोचते नहीं हैं, फिक्र नहीं करते और जज्बात से सोचने की कोशिश नहीं करते कि हमारे सामने वाले के क्या इमोशंस हैं। मेरे ख्याल से चुनावों में धर्म, जाति के आधार पर वोटिंग करना सही नहीं है।... आगे पढ़ें के आगे यहाँ

अभिज्ञात को दिया जायेगा कौमी एकता पुरस्कार

कोलकाता - 'आल इंडिया कौमी एकता मंच' की ओर से अभिज्ञात को उनके उपन्यास 'कला बाजार' के लिए 'कौमी एकता पुरस्कार' देने का निर्णय लिया गया है। यह उपन्यास सन 2008 में आकाशगंगा प्रकाशन, नयी दिल्ली ने प्रकाशित किया है। 9 मई सन् 1857 को स्वतंत्रता संग्राम का ऐतिहासिक दिन है। उसकी वर्षगांठ पर 9 मई 2009 को यह पुरस्कार कोलकाता के कला मंदिर सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया जायेगा। यह जानकारी मंच के महासचिव आफताब अहमद खान ने दी है। उन्होंने बताया कि 'कला बाजार' उपन्यास में विभिन्न धर्मों से जुड़े चरित्र एक-दूसरे की भावनाओं का जिस तरह से खयाल रखते हैं उससे हमारी कौमी एकता और साम्प्रदायिक सद्भाव को बल मिलता है। अभिज्ञात को इससे पहले 'आकांक्षा संस्कृति सम्मान' एवं एचडी मीडिया समूह का 'कादम्बिनी लघुकथा पुरस्कार' मिल चुका है। उनके छह कविता संग्रह 'एक अदहन हमारे अन्दर', 'भग्न नीड़ के आर पार', 'आवारा हवाओं के खिलाफ चुपचाप', 'वह हथेली' तथा 'दी हुई नींद' एवं दो उपन्यास 'अनचाहे दरवाज़े पर' और '

क्या हम सब बदमाश हैं पिंकी.....??

" पिंकी , ऐ क्या मैं बदमाश हूँ .....??" " नहीं तो , कौन कहता है ....??" " देख ना , मम्मी हर समय मुझे बदमाश - बदमाश कह कर डांटती ही रहती है .....??" " ओ ....!! वो तो मेरी मम्मी भी मुझे दिन - रात यही कहती रहती है , सौ - सौ बार से ज्यादा डांटती होंगी मेरी मम्मी दिन भर में मुझे ....!! और पापा भी तो कम नहीं नहीं है .... एक तो रात को घर लौटते हैं.... ऊपर से मम्मी उन्हें जो भी पढ़ा देती हैं , उसी पर मेरी वाट लगा देते हैं ....!!" " हाँ यार !! मेरा भी यही हाल है ... और मेरा - तेरा ही क्यों हमारे सब दोस्तों का भी तो यही हाल है ... सोचते हैं कि रात को पापा के आते ही उनको मम्मी के बारे में बताएँगे .... कि उन्होंने हमें डांटा ... हमें मारा .... लेकिन ये पापा लोग भी मम्मी की ही सुनते हैं ... बच्चों की बात पर तो विश्वास ही नहीं करते ...!!" " राहुल !! ये पापा लोग ऐसे क्यूँ होते हैं ....?? देख ना जब भी पापा हमें प