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Showing posts from October 22, 2008
मां को एक पत्र -संजय सेन सागर तुम मेरे लिए वो सूरज हो जिसका रोशनी में मैं चला हूँ ,माँ तुम मेरे लिए वो धरती हो जिसमें मै पला हूँ। माँ मैं तुम्हारे कदमों के निशां पर चलकर आगे बढ़ा हूँ। माँ मैने देखें है हमारी जरा सी खुशी के लिए आपके गिरते आंसू , हमारी जरा सी ठंडक के लिए आपका गिरता पसीना। माँ तुमने ही बनाया है इस मकां को घर । माँ मैनें आपके आँचल के तले ही मनाई है होली और दीवाली। माँ तुम्हें तो वो याद ही होगा जब तुम बीमार हो जाती थी और अपने इलाज की जगह मुझे खिलौने दिलाती थी । मैं नादान था खुश हो जाता था ।पर तुम्हारे आंसुओं से भीगे तकिये मुझे हर सुबह मिलते थे। माँ तुमने ही सिखाया था ना मुझे हर वक्त सच बोलना फिर मेरी खुशी के लिए क्यों झूठ बोल देती थी तुम। माँ तुम सत्य की वो मूरत हो जिसने झूठ को ख्वाबों में भी हराया है। माँ तुमने ही बनाया है मेरे अस्तित्व को। तुमने ही सिखाया है उंगली थामकर मुझे चलना। तेरे बलिदान और त्याग के कारण ही तुझे भगवान का रूप कहा जाता ,मैने कभी भगवान को नही देखा पर मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूँ की बह तेरी ही परछाई होगी। आखिर कहां से लाती हो माँ तुम इतना सामर्थ्य और