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Showing posts from June 9, 2009

लो क सं घ र्ष !: अब अश्रु जलधि में दुःख के....

आंसू की इस नगरी में, दुःख हर क्षण पहरा देता। साम्राज्य एक है मेरा , साँसों से कहला देता॥ मधुमय बसंत पतझड़ है, मैं जीवन काट रहा हूँ । अब अश्रु जलधि में दुःख के, मैं मोती छांट रहा हूँ॥ आंसू की जलधारा में, युग तपन मृदुल है शेष । माधुरी समाहित होकर, उज्जवल सत् और विशेष ॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह 'राही'

लो क सं घ र्ष !: मेरे मानस की पीडा,, है मधुर स्वरों में गाती...

चेतनते व्याधि बनी तू नीख विवेक के तल में। लेकर अतीत का संबल, अवसाद घेर ले पल में॥ मेरे मानस की पीडा, है मधुर स्वरों में गाती। आंसू में कंचन बनकर पीड़ा से होड़ लगाती॥ मन की असीम व्याकुलता कब त्राण पा सकी जग में । विश्वाश सुमन कुचले है, हंस-हंस कर चलते मग में ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''
साक्षरता सा क्षरता साहस भर नर में, नव जीवन का निर्माण करे। क्ष त्रिय धर्म है रक्षा हेतु रण, मनुज-मात्र यह काम करे। र टना कभी न सिखाती यह, नित प्रति बुद्धि विकास करे। ता कत बनती सबकी विद्या, विपति समय में काम

तनवीर साहब और आदित्य जी को याद करते हुए

हबीब तनवीर और ओमप्रकाश आदित्य की मौत की खबरें कुछ देर के अन्तराल में एजेंसियों पर दिखीं। मन सहसा उदास हो गया। तनवीर साहब से मुलाकात लगभग 15 साल पहले हुई थी। उन दिनों में जनसत्ता कोलकाता में स्ट्रिंगर था और रंगमंच पर भी लिखने की खासा शौक था। सो नाटक देखना, रंगकर्मियों के इंटरव्यू आदि में खूब मन लगता था। वे महानगर में कई नाटकों के साथ आये थे। उसी सिलसिले में एक दिन पूर्व वे मीडिया से बातचीत करना चाहते थे। जो जगह तय की गयी थी वह कोई होटल, रेस्टोरेंट या कोई गेस्ट हाउस नहीं था। किसी व्यक्ति विशेष का फ्लैट भी नहीं बल्कि उसकी खुली छत थी। वहीं बातचीत हुई बेतकल्लुफ और अनौपचारिक ढंग से। माहौल कुछ और इसलिए भी खुला-खुला सा था क्योंकि वहां भुने हुए काजू और जाम टकराने की तमाम व्यवस्थाएं थीं। वे छत पर अलग थलग भी बात करने के तैयार थे। सो एक जाम मैंने भी उनसे टकराया था लेकिन बातचीत कुछ खास बेतकल्लुफ ढंग की नहीं हो पायी क्योंकि न जाने क्यों वे अंग्रेजी में ही बातचीत के मूड में थे और अभ्यास की कमी के कारण मुझे अंग्रेजी बोलने में खासी दिक्कत होती है। फिर भी बातचीत हुई। शायद बेरुखी का कारण वह सार्वजनिक प