छिद्रान्वेषण " को प्रायः एक अवगुण की भांति देखा जाता है , इसे पर दोष खोजना भी कहा जाता है...(faultfinding). परन्तु यदि सभी कुछ , सभी गुणावगुण भी ईश्वर - प्रकृति द्वारा कृत / प्रदत्त हैं तो अवगुणों का भी कोई तो महत्त्व होता होगा मानवीय जीवन को उचित रूप से परिभाषित करने में ? जैसे -- न कहना भी एक कला है , हम उनसे अधिक सीखते हैं जो हमारी हाँ में हाँ नहीं मिलाते , ' निंदक नियरे राखिये ....' नकारात्मक भावों से ..... आदि आदि ... । मेरे विचार से यदि हम वस्तुओं / विचारों / उद्घोषणाओं आदि का छिद्रान्वेषण के व्याख्यातत्व द्वारा उन के अन्दर निहित उत्तम व हानिकारक मूल तत्वों का उदघाटन नहीं करते तो उत्तरोत्तर , उपरिगामी प्रगति के पथ प्रशस्त नहीं करते । आलोचनाओं / समीक्षाओं के मूल में भी यही भाव होता है जो छिद्रान्वेषण से कुछ कम धार वाली शब्द शक्तियां हैं। प्रस्तुत है आज का छिद्रान्वेषण ---- -1--- समाचार के अनुसार - एक अच्छा प्रयोग व पहल ---श्री पुरुषोत्तम अग्रव