ताक़त की ख्वाइश , लुट का लालच , कमजोरो पर ज़ुल्म कुच्छ का कहना है की ये सब ज़ज्बात हैं ! हम खुद को कितना बेहतर ढंग से समझते हैं इस बात का प्रभाव सामाजिक वास्तविकता की हमारी संचालन क्षमता पर गहराई पूर्वक पड़ता है ! कुच्छ क्षेत्रो मै हम खुद को बेहतर तरीके से जानते हैं , लेकिन कुच्छ मामलो मै अपने अच्छे रूप मै दीखने की जरुरत या अच्छे पूर्वाग्रह के चलते हम अपने आप से अजनबी बने रहते हैं ! समय बीतता जाता है और हम खुद से ही रूबरू नहीं हो पाते हैं मेरे ख़याल से भ्रष्टाचार शब्द अपने आप मै अलग - अलग बातों से ताल्लुख रखता है ! आज दुनिया मै हर तरफ इसी का ही बोल - बाला है और आज ये हर तरह के व्यवसाय मै अपना परिचय बहुत खूबसूरती से करवा रही है ! यु कहो की आज सारी दुनिया इसी के रंगों मै रंगी पड़ी है ! क्यु बन जाते हैं लोग भ्रष्टाचारी ? क्या पैसा कमाने की होड़ इसका कारण हो सकता है पर अगर फुर