आज से ठीक 20 साल पहले 4 जून 1989 को बीजिंग के तियानआन चौक पर हजारों लोकतंत्र समर्थक निहत्थे छात्रों पर टैंक दौड़ा दिए गए थे। पूरी दुनिया हतप्रभ थी। टैंक चलाने का आदेश देने वाले तत्कालीन चीनी नेता देंग शियाउ पिंग खलनायक के तौर पर सामने आए थे। उस समय लगने लगा था कि जिस तरह सोवियत संघ की कम्युनिस्ट व्यवस्था लड़खड़ा रही है, वैसा ही हश्र चीन के कम्युनिस्ट शासन का होने वाला है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आज चीन दुनिया में एक बड़ी आर्थिक-सामरिक ताकत के तौर पर सामने है। वैश्विक मंदी से उबरने के लिए विश्व चीन से उम्मीदें लगाए हुए है। क्या हुआ था माओ की मृत्यु के बाद देंग शियाउ पिंग ने कम्युनिस्ट अर्थव्यवस्था को उदारवाद की तरफ मोड़ा। समाजवादी बाजार व्यवस्था के नाम से शुरू किए पिंग के प्रयास इतने धीमे थे कि पार्टी के भीतर की लोकतंत्र समर्थक ताकतें संतुष्ट नहीं थीं और वे चाहती थीं कि राजनीतिक-आर्थिक खुलापन और तेजी से लाया जाना चाहिए और पार्टी के नाम पर चल रहे भ्रष्टाचार पर कड़ी रोक लगाई जाए। लेकिन देंग इससे सहमत नहीं थे। उधर सोवियत संघ में पेरेस्त्रोइका व ग्लासनोस्त (खुलापन) आने से चीन में भी ये ताकतें