आज जब दुनिया ग्लोबल गाव बन गई है तो भारत के संसदीय चुनाव में भी साम्राज्यवादी शक्तियों का प्रयास होगा की उनकी कठपुतली सरकार बने।इसके लिये वह हर सम्भव तरीके से हस्तक्षेप करती दिखाई दे रही है । चुनाव में कोई भी राजनीतिक दल यह नही कहता पूंजीपतियों , उद्योगपतियों के हितों लिए कानून बनाएगा । सभी पूंजीवादी दल किसान , मजदूर व मध्यम वर्ग के लिए परेशान है और उनके हितों के लिए कानून बनने के वादे कर रहे है । किसान मजदूर के हितों के लिए आजादी के बाद कानून बनते रहे है । और आज उनकी हालत यह हो गई है कि किसान आत्महत्याएं कर रहे है , मजदूर कारखानों से निकाले जा रहे है । इसके विपरीत उद्योग पतियों के हित में कानून बनाने का वादा न होने के बावजूद हजारो गुना उन्की परिसम्पतियों में वृद्धि हो चुकी है । चुनाव में महंगाई ,बेरोजगारी , बिजली ,पानी ,शिक्षा,स्वास्थ,आवश,भोजन जैसी मूलभूत समस्याएं मुद्दा नही है। कहा यह जाता है की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जनसभा होने से उन्की पार्टी के पक्ष में एक भी मत की बढ