शब्दों की दीपावली आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' http://divyanarmada.blogspot.com जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप. मोती पले गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप. सीप-दीप से हम मनुज तनिक न लेते सीख. इसीलिए तो स्वार्थ में लीन पड़ रहे दीख. दीप पर्व पर हों संकल्पित रह हिल-मिलकर. दें उजियारा आत्म-दीप बन निश-दिन जलकर. - छंद अमृतध्वनि **************** नव गीत हिल-मिल दीपावली मना रे!... * चक्र समय का सतत चल रहा. स्वप्न नयन में नित्य पल रहा. सूरज-चंदा उगा-ढल रहा. तम प्रकाश के तले पल रहा, किन्तु निराश न होना किंचित. नित नव आशा-दीप जला रे! हिल-मिल दीपावली मना रे!... * तन दीपक मन बाती प्यारे! प्यास तेल को मत छलका रे! श्वासा की चिंगारी लेकर. आशा-जीवन- ज्योति जला रे! मत उजास का क्रय-विक्रय कर. 'सलिल' मुक्त हो नेह लुटा रे! हिल-मिल दीपावली मना रे!... * नव गीत कुटिया हो या महल हर जगह दीवाली है... * तप्त भास्कर, त्रस्त धरा, थे पस्त जीव सब. राहत पाई, मेघदूत पावस लाये जब. ताल-तालियाँ- नदियाँ बहरीन, उमंगें जागीं. फसलें उगीं, आसे