"मेरे भाई दुबई में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करते थे. अच्छी पगार थी. वो घर भर का सहारा थे, उनके भेजे पैसे से गृहस्थी की गाड़ी खिंच रही था. बहन की शादी की तैयारियां की जा रही थीं..... अब सारे अरमानों पर पानी फिर गया है." गोरखपुर के रहनेवाले सैय्यद शमसुद्दीन हैदर के बड़े भाई की नौकरी चली गई है. यह परिवार भारत के उन लाखों परिवारों जैसा ही है जो विदेश जाकर कमाने वाले लोगों के ज़रिए यहाँ अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे हैं. आर्थिक मंदी की चपेट में आई विश्व अर्थव्यवस्था के कारण अर्थजगत के बड़े बड़े प्रतिष्ठान अपने बुरे दौर से गुज़र रहे हैं. अमरीका, यूरोप और अरब देशों में कितने ही लोगों को छटनी करके बाहर कर दिया गया है. कई लोग कम तन्ख़्वाहों पर काम करने को मजबूर हैं. इस रिपोर्ट को सुनने के लिए यहां क्लिक करें भारत से भी काम के लिए लोगों के बाहर जाने का प्रवाह धीमा हुआ है. वापस आनेवालों की तादाद बढ़ती जा रही है. वायलार रवि पिछले वर्ष तक विदेश में रह रहे भारतीयों के ज़रिए भारत आ रही पूंजी का आंकड़ा लगभग 30 अरब अमरीकी डॉलर के आसपास था पर इसबार इसमें रिकॉर्ड बढ़त हुई है और इस पैसे क