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Showing posts from June 19, 2009

किसे है हज़ारों प्रभावित परिवारों की सुध...?

"मेरे भाई दुबई में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करते थे. अच्छी पगार थी. वो घर भर का सहारा थे, उनके भेजे पैसे से गृहस्थी की गाड़ी खिंच रही था. बहन की शादी की तैयारियां की जा रही थीं..... अब सारे अरमानों पर पानी फिर गया है." गोरखपुर के रहनेवाले सैय्यद शमसुद्दीन हैदर के बड़े भाई की नौकरी चली गई है. यह परिवार भारत के उन लाखों परिवारों जैसा ही है जो विदेश जाकर कमाने वाले लोगों के ज़रिए यहाँ अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे हैं. आर्थिक मंदी की चपेट में आई विश्व अर्थव्यवस्था के कारण अर्थजगत के बड़े बड़े प्रतिष्ठान अपने बुरे दौर से गुज़र रहे हैं. अमरीका, यूरोप और अरब देशों में कितने ही लोगों को छटनी करके बाहर कर दिया गया है. कई लोग कम तन्ख़्वाहों पर काम करने को मजबूर हैं. इस रिपोर्ट को सुनने के लिए यहां क्लिक करें भारत से भी काम के लिए लोगों के बाहर जाने का प्रवाह धीमा हुआ है. वापस आनेवालों की तादाद बढ़ती जा रही है. वायलार रवि पिछले वर्ष तक विदेश में रह रहे भारतीयों के ज़रिए भारत आ रही पूंजी का आंकड़ा लगभग 30 अरब अमरीकी डॉलर के आसपास था पर इसबार इसमें रिकॉर्ड बढ़त हुई है और इस पैसे क

बुढ़िया की व्यथा

परवरिश में भूल हुई क्या, न जाने ढलती उम्र में बच्चे आँख दिखाते हैं नाजों से पाला था जिनको, न जाने क्यूँ अब सहारा बनने से कतराते हैं निवाला अपने मुंह का खिलाया जिनको, न जाने क्यूँ वे आज साथ खाने से घबराते हैं सारा दर्द मेरे हिस्से और खुशियाँ उनके, न जाने क्यूँ वे अब भी दर्द मेरे हिस्से ही छोड़ जाते हैं उनकी पार्टी मानती है रोशनी में और मेरी साम अँधेरी कोठरी में, न जाने क्यूँ वे हर बार मुझे ही शामिल करना भूल जाते हैं उम्र के साथ कमजोर हुई मेरी सोच, न जाने क्यूँ वे आज मुझे याद करने से डर जाते हैं जीवन के आखिरी सफर में चेहरे सबके देखने की हसरत में, न जाने क्यूँ मेरे अपने विदेश में बैठ जाते हैं अपनी उखरती साँसों के समय साथ उनका चाहा मैंने, न जाने क्यूँ वे काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं उम्र भर सबको साथ लेकर चली मैं, न जाने क्यूँ मेरी विदाई को वे गुमनामी में निपटाते हैं॥ ज्ञानेंद्र, अलीगढ

मुस्लिम बेटे ने किया हिंदू रीति से पिता का अंतिम संस्कार

जावरा. शिक्षाविद् एक हिंदू पिता का देहांत होने पर उसके मुस्लिम बेटे ने हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया। सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन गुरुवार को यहां पिता के प्रति प्रेम और एकता की आदर्श मिसाल कायम हुई है। विज्ञान और गणित विषय के विशेषज्ञ आर.के. मजूमदार का गुरुवार को देहांत हुआ। वे 62 वर्ष के थे और वर्ष 1980 में कलकत्ता से काम की तलाश में जावरा आए थे। कुछ समय प्रीमियर ऑयल मिल में काम किया लेकिन शिक्षा का ज्ञान उन्हें शिक्षा जगत में ले आया। कई साल से वे पिपलौदा रोड स्थित एमरॉल्ड स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहे थे। इनसे शिक्षा लेकर कई बच्चे विदेशों में नाम कमा चुके हैं। यहां उनका अपना कोई न था ऐसे में पुरानी धानमंडी स्थित पुराने महल में रहने वाले बादशाह मियां उनके जीवन में आए और श्री मजूमदार को उन्होंने परिवार में बेटे का स्थान दिया। बादशाह मियां के देहांत के बाद उनके बेटे अमजद को श्री मजूमदार ने गोद ले लिया। अमजद फिलहाल मुगलपुरा में रहता है और श्री मजूमदार भी बीमार होने से पहले तक उनके साथ ही रहते थे। अपना अधिकांश समय एमरॉल्ड स्कूल के विकास की सोच में लगाते थे और इसीलिए गुरुवार को