लगता है मेरी मौत मुझको बुला रही॥
देखो ज़रा गगन में ओ सज के आ रही है॥
मेरी भी अर्थी को तुम लोग भी सजाओ॥
गम में थोड़ा डूब के आंसूओ को बहाओ॥
मेरी करनी कथनी पे ओ मुस्का रही है॥
लगता है मेरी मौत मुझको बुला रही॥
देखो ज़रा गगन में ओ सज के आ रही है॥
मैंने कभी किसी पे दया दृष्ट नहीं डाली॥
मौक़ा मिला हमें जब खाली किया थाली॥
कैसे कर्म थे मेरे अब मुझको बता रही है॥
लगता है मेरी मौत मुझको बुला रही॥
देखो ज़रा गगन में ओ सज के आ रही है॥
सदा किया था घात सूझा हमें उत्पात॥
हमेशा मैंने अपनी दिखया था औकात॥
मेरे ही पाप की बू से बदबू आ रही है॥
लगता है मेरी मौत मुझको बुला रही॥
देखो ज़रा गगन में ओ सज के आ रही है॥
देखो ज़रा गगन में ओ सज के आ रही है॥
मेरी भी अर्थी को तुम लोग भी सजाओ॥
गम में थोड़ा डूब के आंसूओ को बहाओ॥
मेरी करनी कथनी पे ओ मुस्का रही है॥
लगता है मेरी मौत मुझको बुला रही॥
देखो ज़रा गगन में ओ सज के आ रही है॥
मैंने कभी किसी पे दया दृष्ट नहीं डाली॥
मौक़ा मिला हमें जब खाली किया थाली॥
कैसे कर्म थे मेरे अब मुझको बता रही है॥
लगता है मेरी मौत मुझको बुला रही॥
देखो ज़रा गगन में ओ सज के आ रही है॥
सदा किया था घात सूझा हमें उत्पात॥
हमेशा मैंने अपनी दिखया था औकात॥
मेरे ही पाप की बू से बदबू आ रही है॥
लगता है मेरी मौत मुझको बुला रही॥
देखो ज़रा गगन में ओ सज के आ रही है॥
बहुत सुन्दर !
ReplyDeletethankyou sir,,,,,
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