Skip to main content

कविता : संजीव 'सलिल'

कविता  :  संजीव 'सलिल'


*

















*
जिसने कविता को स्वीकारा, कविता ने उसको उपकारा.
शब्द्ब्रम्ह को नमन करे जो, उसका है हरदम पौ बारा..

हो राकेश दिनेश सलिल वह, प्रतिभा उसकी परखी जाती-
 होम करे पल-पल प्राणों का, तब जलती कविता की बाती..

भाव बिम्ब रस शिल्प और लय, पञ्च तत्व से जो समरस हो.
उस कविता में, उसके कवि में, पावस शिशिर बसंत सरस हो..

कविता भाषा की आत्मा है, कविता है मानव की प्रेरक.
राजमार्ग की हेरक भी है, पगडंडी की है उत्प्रेरक..

कविता सविता बन उजास दे, दे विश्राम तिमिर को लाकर.
कविता कभी न स्वामी होती, स्वामी हों कविता के चाकर..

कविता चरखा, कविता चमडा, कविता है करताल-मंजीरा.
लेकिन कभी न कविता चाहे, होना तिजोरियों का हीरा..

कविता पनघट, अमराई है, घर-आँगन, चौपाल, तलैया.
कविता साली-भौजाई है, बेटा-बेटी, बाबुल-मैया..

कविता सरगम, ताल, नाद, लय, कविता स्वर, सुर वाद्य समर्पण.
कविता अपने अहम्-वहम का, शरद-पग में विनत विसर्जन..

शब्द-साधना, सताराधना, शिवानुभूति 'सलिल' सुन्दर है.
कह-सुन-गुन कवितामय होना, करना निज मन को मंदिर है..

******************************
जब भी 'मैं' की छूटती, 'हम' की हो अनुभूति.
तब ही 'उस' से मिलन हो, सबकी यही प्रतीति..

Comments

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा