कोमल सा तन है बहुत लजाती॥
पड़ोस वाली लड़की हमें याद आती॥
होठो से हंसी की पहेली बुझाती॥
पड़ोस वाली लड़की हमें याद आती॥
कजरारी आँखे सुरीली है बोली॥
घने घने केश है करते ठिठोली॥
मेरे घर का चक्कर हमेशा लगाती॥
पड़ोस वाली लड़की हमें याद आती॥
नाजुक बदन पर श्वेत रंग का शूट है॥
नाजुक बदन पर श्वेत रंग का शूट है॥
मुझसे है कहती तुम्हारे लिए छूट है॥
सपनो में मुझको आके जगाती ॥
पड़ोस वाली लड़की हमें याद आती॥
उसकी अदाओं का मै हूँ दीवाना॥
उसकी अदाओं का मै हूँ दीवाना॥
उसके अब सपने हमें है सजाना॥
इशारों पे अपने मुझको नचाती॥
पड़ोस वाली लड़की हमें याद आती॥
कहे कोई कुछ ताना मारे जबाना॥
मैंने अब ठाना है नहीं है डराना॥
मेरे माँ बाप से थोड़ा लजाती है॥
पड़ोस वाली लड़की हमें याद आती॥
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--- संजय सेन सागर