लोग कहते हैं क्यों युंही सिर खपाता हूं ।
गीत गाता व्यर्थ ही क्यों गुन गुनाता हूं ।
गीत ही है जिन्दगी मेरे लिये ए दोस्त,
ज़िन्दगी जीता हूं मैं तो गुन गुनाता हूं.
जाने कितने गम ज़माना लिये फ़िरता है,
गीत गाकर मैं वही तुमको सुनाता हूं ।
त्रस्त है जीवन यहां हर खासो-आम का ,
इसलिये जन-जन की बातें कहता जाता हूं।
हो रहीं क्यों जहां में ख्वारियां रुसवाइयां,
तुम हो डरते किन्तु मैंतो कह सुनाता हूं।
कौन धाये है कहर सब खासो-आम पर,
श्याम तुम कहते नहीं पर मैं तो गाता हूं।
--डा. श्याम गुप्त
गीत गाता व्यर्थ ही क्यों गुन गुनाता हूं ।
गीत ही है जिन्दगी मेरे लिये ए दोस्त,
ज़िन्दगी जीता हूं मैं तो गुन गुनाता हूं.
जाने कितने गम ज़माना लिये फ़िरता है,
गीत गाकर मैं वही तुमको सुनाता हूं ।
त्रस्त है जीवन यहां हर खासो-आम का ,
इसलिये जन-जन की बातें कहता जाता हूं।
हो रहीं क्यों जहां में ख्वारियां रुसवाइयां,
तुम हो डरते किन्तु मैंतो कह सुनाता हूं।
कौन धाये है कहर सब खासो-आम पर,
श्याम तुम कहते नहीं पर मैं तो गाता हूं।
--डा. श्याम गुप्त
श्याम जी बहुत खूब लिखा आपने
ReplyDeleteश्याम जी बहुत खूब लिखा आपने
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