मुक्तक
ताप से तप से कभी-
राग से रस से कभी-
जीवन विसंगतियों भरा -
राम से रब से कभी॥
तुम मिलो जिंदगी दीप वन जल उठे ।
अश्रु की धार में प्यार भी पल उठे ।
भावना के सलोने मधुर दे बता-
तुम मिलो जिंदगी गीत में ढल उठे॥
तूलिका सी वरौनी सजाये हुए।
भेद भरे नैन सपने संजोय हुए।
कोर काजर ह्रदय पर करे घात यों-
जैसे मुनि मेनका में समाये हुए॥
लाल अंधेरो में मोती सजाये हुए।
नासिका सुकू सी गर्दन झुकाए हुए।
चैन छीना है मादक कपोलो ने यों-
जैसे राधा ठगी दृग लगाये हुए॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
लाल अंधेरों में मोती सजाएँ है
ReplyDeleteइन शब्दों ने दिल जीत लिया !
लाल अंधेरों में मोती सजाएँ है
ReplyDeleteइन शब्दों ने दिल जीत लिया !
इतना सुंदर लिखे हैं आप की दिल खुश हो गया! तितली का फोटो भी खूब लगाया है आपने! आप एक बहुत ही उंदा लेखक और कवि है!
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