बिहार के बक्सर संसदीय क्षेत्र का एक गाँव जहाँ मनमोहन और सुशासन बाबु के दावों की कलई खुलती नज़र आती है । बिजली -पानी-सड़क -शिक्षा-रोजगार जैसी आधारभूत जरूरते अधूरी है । बार-बार वादे ! हर बार नए -नए नारे ! आख़िर वादाखिलाफी से तंग आकर उनका गुस्स्सा फूट पड़ा । लोगों से वोट मांगने पहुंचे बाहुबली ददन पहलवान का स्वागत मतदाताओं ने जूते-चप्पलो से किया । कल तक छाती तान कर वोट मांगने वाले बाहुबली ददन भी विरोध के इस ब्रह्मास्त्र से सहमे नजर आए ।
जी हाँ ," जूता " आज पुरे विश्व में विरोध का प्रतिक बन गया है । भारत में अरुंधती राय पर "युवा "(yuva) ने चप्पल क्या फेंका , नेताओ को जुतियाने का सिलसिला ही चल पड़ा । चिदंबरम के बाद नवीन जिंदल पर जूता चलते ही सारा चुनावी माहौल जुतामय हो गया । हर रोज कहीं न कहीं नेताओ की चुनावी सभा में जूतों की बारिश हो रही है ।
'विरोध' लोकतंत्र के लिए प्राणवायु का काम करता है । विरोध को अगर सम्मान न मिले तो लोकतंत्र को मृत समझा जाना चाहिए । हमारे यहाँ तो सम्मान की यह भावना कब की दम तोड़ चुकी है । विरोध के सारे संस्थानों को हाइजैक किया जा चुका है। पटना का हड़ताली चौंक हो या दिल्ली का जंतर-मंतर हजारों लोग जुलुस लेकर चीखते-चिल्लाते हैं और चले जाते हैं । कहीं कोई सुनने वाला नही ! नतीजा वही ढाक के तीन पात ! राजधानी में विरोध का , अपनी बात कहने का एक और संस्थान पिकनिक प्लेस में तब्दील हो चुका है । किसी साधारण आदमी के बस की बात नही कि वो यहाँ बुकिंग कर सके । कभी जन- आन्दोलनों की दिशा तय करने वाले जगहों पर आज बड़े- बड़े नेताओं की टेबल पॉलिटिक्स होती है । एक आम आदमी "{ A STUPID COMMON MAN }" क्या करे , कहाँ अपना विरोध दर्ज करे ? है कोई जवाब उनके पास जो' जूते' को विरोध का हथियार मानने से इंकार करते हैं ? आप असहमत हो सकते हैं पर, आम आदमी की मजबूरी को समझिये । सेलिब्रिटी , क्राइम और क्रिकेट के सहारे चल रही मीडिया में ख़ुद की आवाज पहुँचाना सहज नही है । तब आप लोगों को कोई ऐतराज़ नही हुआ जब , विरोध के लिए चड्डियों और कंडोम का सहारा लिया गया ? आपके हिसाब से तो इन्हे जंतर -मंतर पर चिल्लम -चिल्ली करनी चाहिए थी । लेकिन क्या इनकी आवाज़ आप तक पहुँचती ?एक ज़माने में गाँधी मीडिया के हीरो थे , उनका छोटा से छोटा कार्यक्रम तत्कालीन मीडिया की सुर्खियाँ बटोर ले जाता था ।उनके एक -एक वाक्य अख़बारों की लीड बन जाते थे । ऐसे समय में भगत सिंह को अपनी आवाज़ की गूँज सुनाने के लिए बम फोड़ने का हिंसक काम करना पड़ा था । एक आम आदमी कोई राहुल गाँधी तो हैं नही ! जो जरा सी छींक आने पर इनकी आवाज़ जनता तक पहुँच सके । राहुल कलावती के घर जाते हैं तो सारे देश को पता चल जाता है लेकिन इसी देश के दस करोड़ वानवासिओं के लिए एकल विद्यालय चलाने वाले के ० एन ० राघवन को कोई नही जनता ! ऐसे में विरोध का तरीका तो नया और मीडिया मसाला के हिसाब से ही होना चाहिए । फिलवक्त , जो भी हो विरोध के सारे तरीको पर जूता फेंकना भारी पड़ता दिख रहा है । चंद युवाओं की मुहीम करोडों लोगों के लिए रामबाण साबित हो रहा है । आगे-आगे देखिये होता है क्या ?
सुन्दर लिखा है
ReplyDeleteइसी तरह लिखते रहिये
हम दोनों मिल के देखते है क्या होता है !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया !
ReplyDeleteआपने बहुत ही खुबसूरत रूप से विस्तार किया है ! आप की हर एक कहानी और कविता लाजवाब है!
babli ji samjha nahi ye kaisa comment hai ? kahani to maine likha hi nahi ............ ye sahity nahi rajnaitik mudda hai behtar hoga yadi aap sabhi apni ray sambandhit mudede par de
ReplyDeleteदेखकर पहली बार ऐसा लगा की कोई अच्चा ब्लॉग पढ़ रहा हूँ, लिकते रहो हम आपके साथ हैं.
ReplyDeleteजयराम जी बबली जी की बात अपनी समझ से भी बड़ी निकली यार
ReplyDeleteजयराम जी आपका यह लेख मैं देर से पड़ सका और इसे आपने इतनी खूबसूरती से लिखा है की मुझे मजबूरन सबसे ऊपर लगाना पढ़ा !
ReplyDeleteआप इसी तरह अपना सहयोग हम तक पहुंचाते रहेंगे यही आशा है !
जय हिन्दुस्तान-जय यंगिस्तान
संजय जी और तमाम ब्लॉगर मित्रों ,
ReplyDeleteमैं लेखन थोथी प्रशंसा पाने के लिए नहीं करता हूँ .
मेरे लेखन का उद्देश्य सार्थक मुद्दों पर बहस के जरिये जागरूकता पैदा करना है .
मैं कोई व्यावसायिक पत्रकार नहीं बल्कि राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्त्ता हूँ . और पत्रकारिता को क्रांति का हथियार मानता हूँ .
इतना सब कहने का मतलब कि पोस्ट पर टिप्पणी करते समय कृपा कर सम्बंधित मुद्दे का ध्यान रखें और केवल दिखावटी तारीफ न करें .
मसलन , कुछ टिप्पणी जैसे - अच्छा लिखा है, बहुत अच्छा लिखा है, बढ़िया लेखन , शुभकामनाये , आदि . इनसे ऐसा लगता है कि बस बगैर पढ़े कुछ भी लिख दो और चलते बनो . जरा मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे .
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संजय जी और तमाम ब्लॉगर मित्रों ,
ReplyDeleteमैं लेखन थोथी प्रशंसा पाने के लिए नहीं करता हूँ .
मेरे लेखन का उद्देश्य सार्थक मुद्दों पर बहस के जरिये जागरूकता पैदा करना है .
मैं कोई व्यावसायिक पत्रकार नहीं बल्कि राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्त्ता हूँ . और पत्रकारिता को क्रांति का हथियार मानता हूँ .
इतना सब कहने का मतलब कि पोस्ट पर टिप्पणी करते समय कृपा कर सम्बंधित मुद्दे का ध्यान रखें और केवल दिखावटी तारीफ न करें .
मसलन , कुछ टिप्पणी जैसे - अच्छा लिखा है, बहुत अच्छा लिखा है, बढ़िया लेखन , शुभकामनाये , आदि . इनसे ऐसा लगता है कि बस बगैर पढ़े कुछ भी लिख दो और चलते बनो . जरा मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे .
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