पता नहीं क्यूँ उसके वादे पर करार रहा
वो झूठा था पर उसपे मुझे ऐतबार रहा !!
दिन-भर मेहनत ने मुझे दम ना लेने दिया
और फिर रात भर दर्द मुझसे बेहाल रहा !!
अजीब यह कि जो खेलता था,अमीर था
और जो मेहनत-कश था,वो बदहाल रहा !!
सच मुहँ छुपाये कचहरी में खडा रहता था
झूठ अन्दर-बाहर सब जगह वाचाल रहा !!
कई बार सोचा कि मैं ही अपना मुहं खोलूं
और लोगों की तरह मैं भी हलकान रहा !!
वो झूठा था पर उसपे मुझे ऐतबार रहा !!
दिन-भर मेहनत ने मुझे दम ना लेने दिया
और फिर रात भर दर्द मुझसे बेहाल रहा !!
अजीब यह कि जो खेलता था,अमीर था
और जो मेहनत-कश था,वो बदहाल रहा !!
सच मुहँ छुपाये कचहरी में खडा रहता था
झूठ अन्दर-बाहर सब जगह वाचाल रहा !!
कई बार सोचा कि मैं ही अपना मुहं खोलूं
और लोगों की तरह मैं भी हलकान रहा !!
Comments
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर