चाँद की चांदनी कब अकेले मिली।
चाँद की चांदनी कब अकेले मिली।
स्याह रातों के फन सी वो फैली मिली॥
फूल रंगीन ही दे दिया खून तक-
फ़िर भी मुस्कान झूठी विषैली मिली॥
यम की आँखों से आंसू निकलने लगे -
आदमी बाँटता मौत कैसी मिली॥
लाश का हर कफ़न साफ़ सुथरा मिला-
जिंदगी बद से बदतर औ मैली मिली॥
------------- डॉक्टर यशवीर सिंह चन्देल 'राही'
चाँद की चांदनी कब अकेले मिली।
स्याह रातों के फन सी वो फैली मिली॥
फूल रंगीन ही दे दिया खून तक-
फ़िर भी मुस्कान झूठी विषैली मिली॥
यम की आँखों से आंसू निकलने लगे -
आदमी बाँटता मौत कैसी मिली॥
लाश का हर कफ़न साफ़ सुथरा मिला-
जिंदगी बद से बदतर औ मैली मिली॥
------------- डॉक्टर यशवीर सिंह चन्देल 'राही'
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ReplyDeleteकफ़न पाक और जिंदगी नापाक मिली..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना
मैं विनती करता हूँ अनाम नामों से राय देने वालों से की इस तरह की बात न करें जिससे की लेखक का मनोबल गिरता हो !
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