जीवन का सत्य
आचार्य संजीव 'सलिल'
मुझे 'मैं' ने, तुझे 'तू' ने, हमेशा ही दिया झाँसा।
खुदी ने खुद को मकडी की तरह जाले में है फांसा। ।
निकलना चाहते हैं हम नहीं, बस बात करते हैं।
खुदी को दे रहे शह फिर खुदी की मात करते हैं।
चहकते जो, महकते जो वही तो जिन्दगी जीते।
बहकते जो 'सलिल' निज स्वार्थ में वे रह गए रीते।
भरेगा उतना जीवन घट करोगे जितना तुम खाली।
सिखाती सत्य जीवन का हमेशा खिलती शेफाली।
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आचार्य संजीव 'सलिल'
मुझे 'मैं' ने, तुझे 'तू' ने, हमेशा ही दिया झाँसा।
खुदी ने खुद को मकडी की तरह जाले में है फांसा। ।
निकलना चाहते हैं हम नहीं, बस बात करते हैं।
खुदी को दे रहे शह फिर खुदी की मात करते हैं।
चहकते जो, महकते जो वही तो जिन्दगी जीते।
बहकते जो 'सलिल' निज स्वार्थ में वे रह गए रीते।
भरेगा उतना जीवन घट करोगे जितना तुम खाली।
सिखाती सत्य जीवन का हमेशा खिलती शेफाली।
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर