राह मे अकेले
जो तुम चले...
फिर तुम से ..हम मिले
साथ मिल कर ...थाम के हाथ मेरा ..
नयी राहो पे हम साथ चले ....
नजरो के रास्ते ..तुम हो दिल मे बसे
वफ़ा की मूरत ...जफा की सूरत..
लिए अनजान रहो पे साथ बढे ........
दुनिया की इस भीड़ मे..
मै भी अकली सी थी
खुद को तलाशती सी थी ....
पर नहीं मिला कोई भी..
पर जब से हम से ,तुम मिले हो
हर राह साथ चले हो ..दे कर अपना साथ ,
लेकर मुझे साथ ,
कोई धोखा नहीं,कोई नहीं किया फरेब
दिया अपना सच्चा साथ ,
हर राह को किया तुमने आसान ,
इस जिंदगी को बना दिया जीने के काबिल ,
तुम से मुझे हर ख़ुशी मिली ,मिला जीने को
पूरा ये आसमा ...
जहा मे भी उडी ..अपने अरमानो के पंख लगा ,
इतिह्सा का तो पता नहीं .......
हक्कीकत की ज़मी पे हो मेरे साथ....
तुम से ..हम मिले........तुम से हम मिले ........
(....कृति.....अनु.....)
अनुराधा जी मैं आपकी रचनाओं के बारे मे पहेले ही बता चुका हूँ की आपके लेखन मे एक जादू है आप बड़ी सरलता और सटीकता से अपनी बार कह देती है जो सीधे हमारे दिल तक पहुँचती है आप इसी तरह अपनी रचनाये यहाँ प्रकासित कर सहयोग देती रहे हम आपके बहुत ही आभारी है !!!
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