

पर्वत की शाखाए भारत को॥
तहजीब सलामी करती है॥
रखती है नजर हर कोने में॥
नदिया कल कल कह बहती है॥
उसकी गोदी में सुख संपत्ति॥
हर हर करके लहराती है॥
जब अच्छी अनौकिक घटना घटती...
समृधि कड़ी मुस्काती है॥
हसे गगन भी मोती बरसे॥
अमृत रस टपकती है॥
भारत का भण्डार न खली॥
न तो कोई शिकायत है॥
थोड़ा सा मानव भरष्ट हुआ है॥
यही बड़ी हिमाकत है॥
मौत यहाँ पर आते आते ॥
हंस करके रुक जाती है...
बहुत सुंदर कविता, बधाई।
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ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।