वह अचरज की नैया बड़ी अनोखी॥
जो झोड़ गयी मजधार में॥
मै डूब डूब उतरा रहा हूँ॥
मेरा कोई नहीं संसार में॥
मै जैसा जैसाकर्म किया॥
वैसा फल भी पाया हूँ॥
धन दौलत से संपन्न थे॥
दो पुत्र रत्न उपजाया हूँ॥
इस हालत में सारे झोड़ गए॥
मै बिलख रहा बीच धार में॥
मै डूब डूब उतरा रहा हूँ॥
मेरा कोई नहीं संसार में॥
कुछ कर्म हमारे बुरे हुए थे॥
मै उनसे टकराया था॥
लाभ हानि का छोड़ के चक्कर॥
उनको मार गिराया था॥
उस पुन्य पाप को भोग रहा हूँ॥
अब तीर लगा है जान में..
जो झोड़ गयी मजधार में॥
मै डूब डूब उतरा रहा हूँ॥
मेरा कोई नहीं संसार में॥
मै जैसा जैसाकर्म किया॥
वैसा फल भी पाया हूँ॥
धन दौलत से संपन्न थे॥
दो पुत्र रत्न उपजाया हूँ॥
इस हालत में सारे झोड़ गए॥
मै बिलख रहा बीच धार में॥
मै डूब डूब उतरा रहा हूँ॥
मेरा कोई नहीं संसार में॥
कुछ कर्म हमारे बुरे हुए थे॥
मै उनसे टकराया था॥
लाभ हानि का छोड़ के चक्कर॥
उनको मार गिराया था॥
उस पुन्य पाप को भोग रहा हूँ॥
अब तीर लगा है जान में..
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर