मै कवि नहीं कल्पित अक्षर हूँ॥
जो रच रच शब्द खिलाता हूँ॥
बड़े बड़े विद्धवानो से ॥
समय समय बचवाता हूँ॥
मै वीर नहीं विरला अक्षर हूँ॥
जो स्वर से स्वर मिलाता हूँ॥
बड़े बड़े कलाकारों के संग॥
साथ में ठुमका लगाता हूँ॥
मै फूल नहीं फुलझडिया हूँ॥
जो वाया हाथ मिलाता हूँ॥
भगवन के मन मंदिर में॥
मंगल मय बात बताता हूँ॥
जो रच रच शब्द खिलाता हूँ॥
बड़े बड़े विद्धवानो से ॥
समय समय बचवाता हूँ॥
मै वीर नहीं विरला अक्षर हूँ॥
जो स्वर से स्वर मिलाता हूँ॥
बड़े बड़े कलाकारों के संग॥
साथ में ठुमका लगाता हूँ॥
मै फूल नहीं फुलझडिया हूँ॥
जो वाया हाथ मिलाता हूँ॥
भगवन के मन मंदिर में॥
मंगल मय बात बताता हूँ॥
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
ReplyDeletethankyou sir,,,,,ji,,,
ReplyDeletebahut sundar prastuti.
ReplyDeletethankyou ma'm
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