इंसानों से बड़ा पेड़
मगर ज़मी से जुड़ा पेड़ !
इंसानों की खातिर फिर
कितने तुफानो से लड़ा पेड़ !
धरती की भूमि पर .............
चित्र सरीखे खड़ा पेड़ !
जाने किसके इंतजार मै ............
सड़क किनारे खड़ा पेड़ !
पंडित और मोलवी की बाते सुन
पल भर न डिगा पेड़.!..
धूप रोक फिर छाया देकर ........
फ़र्ज़ निभा फिर झड़ा पेड़ !
सीने मै रख हवा बसंती
आंधी मै फिर उड़ा पेड़ !
खेतो मै पानी लाने को
बादल से जा भीड़ा पेड़ !
फल खाए जिसने उसने ही काटा
जान शर्म से गड़ा पेड़ !
इंसा की जरूरतों को पूरा करते ...........
कटा ज़मी पर पड़ा पेड़ !
बेहतरीन प्रस्तुति ,बधाई !
ReplyDeleteगहन भावों की अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteपेड़ के प्रति आपकी भाव-पूर्ण कविता सराहनीय है....
ReplyDeleteपेड़ की आत्मकथा आपने बेहतरीन तरीके हे कही , बधाई। ,
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति....
ReplyDeleteप्रक्रति के प्रति आपका इस कदर प्यार देख कर बहुत ख़ुशी हुई दोस्तों !
ReplyDeleteअपना कीमती समय देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !