संजय सेन सागर ......!
शैलेश भारतवासी जी को हिन्दयुग्म के एक और सफल आयोजन पर बधाई और उनके हिंदी प्रेम को मेरा सलाम..!!
मैं भी थोडा बहुत लिखता हूँ मैंने आखिरी कविता पिछले माह हिंद युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता के लिए लिखी थी..प्रतियोगिता हो गयी..नतीजे आ गए..मैं हार भी गया
अब इस कविता का क्या करूँ? कोई काम की नहीं रही..शायद!
सोचा आप लोगों को ही पढ़ा देता हूँ..तो पढिये आप इस कविता को और मैं अभी जून माह के लिए नयी कविता लिखूंगा..वो मुझे हराते-हराते हार जायेंगे,पर मैं हारते हारते नहीं हारूंगा.....और एक दिन जीत कर ही दम लूँगा!
लेकिन कब अभी यह तय नहीं है..फिलहाल अभी आपका इसे पढ़ लेना ही बेहतर है
अमिट दर्दीली दांस्ता
क्यों इस दुनिया मे हर शख्स हार जाता है
क्यों आसमान को चीरने वाला ही मंजिल पाता है
क्यों दर्द और मुस्कराहट रहते है साथ हमेशा
क्यों आखिर में दर्द मुस्कराहट से हार जाता है?
जिंदगी आखिर क्यों ख़त्म हो जाती है,इच्छाओं से पहले
क्यों हर एक सपना टूट जाता है,हकीकत से पहले?
क्यों जेहन में शून्य छा जाता है?
आखिर क्यों वो खून से लिपटा अजनबी याद आता है?
खोजना है हर वो जवाब जिसका हर एक सवाल हमें तोड़ जाता है
कैद करना है वो आसमां जो अक्सर हमें पीछे छोड़ जाता है
करनी है एक कोशिश उस खूनी के दिल को पिघलाने की
जो हर बार हमे जलाकर,जलता छोड़ जाता है !
देखी है मैंने भूंखे और बीमार चेहरे पर बेटी की शादी की फ़िक्र
मगर हर बार वो हवसी उस मासूम कली को कुचल जाता है
हम तो हर बार मिलाया है हिन्दू,मुस्लिम और सिखों को
मगर वो नेता हर खून को काला,नीला,और लाल बता जाता है
आगे पढ़ें के आगे यहाँ
शैलेश भारतवासी जी को हिन्दयुग्म के एक और सफल आयोजन पर बधाई और उनके हिंदी प्रेम को मेरा सलाम..!!
मैं भी थोडा बहुत लिखता हूँ मैंने आखिरी कविता पिछले माह हिंद युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता के लिए लिखी थी..प्रतियोगिता हो गयी..नतीजे आ गए..मैं हार भी गया
अब इस कविता का क्या करूँ? कोई काम की नहीं रही..शायद!
सोचा आप लोगों को ही पढ़ा देता हूँ..तो पढिये आप इस कविता को और मैं अभी जून माह के लिए नयी कविता लिखूंगा..वो मुझे हराते-हराते हार जायेंगे,पर मैं हारते हारते नहीं हारूंगा.....और एक दिन जीत कर ही दम लूँगा!
लेकिन कब अभी यह तय नहीं है..फिलहाल अभी आपका इसे पढ़ लेना ही बेहतर है
अमिट दर्दीली दांस्ता
क्यों इस दुनिया मे हर शख्स हार जाता है
क्यों आसमान को चीरने वाला ही मंजिल पाता है
क्यों दर्द और मुस्कराहट रहते है साथ हमेशा
क्यों आखिर में दर्द मुस्कराहट से हार जाता है?
जिंदगी आखिर क्यों ख़त्म हो जाती है,इच्छाओं से पहले
क्यों हर एक सपना टूट जाता है,हकीकत से पहले?
क्यों जेहन में शून्य छा जाता है?
आखिर क्यों वो खून से लिपटा अजनबी याद आता है?
खोजना है हर वो जवाब जिसका हर एक सवाल हमें तोड़ जाता है
कैद करना है वो आसमां जो अक्सर हमें पीछे छोड़ जाता है
करनी है एक कोशिश उस खूनी के दिल को पिघलाने की
जो हर बार हमे जलाकर,जलता छोड़ जाता है !
देखी है मैंने भूंखे और बीमार चेहरे पर बेटी की शादी की फ़िक्र
मगर हर बार वो हवसी उस मासूम कली को कुचल जाता है
हम तो हर बार मिलाया है हिन्दू,मुस्लिम और सिखों को
मगर वो नेता हर खून को काला,नीला,और लाल बता जाता है
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bahut khoob...sachi baat keh di aapne..shukriya
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ReplyDeleteआपकी कविता ने हमारा दिल जीत लिया...
ReplyDeleteजिंदगी का बहुत निचोड़ है इस कविता में....
बहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteआप इसी तरह प्रगति के मार्ग पर आगे बढते जाये यही दुआ है
बहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteआप इसी तरह प्रगति के मार्ग पर आगे बढते जाये यही दुआ है
बहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteआप इसी तरह प्रगति के मार्ग पर आगे बढते जाये यही दुआ है