जब मैं शहर से गाँव पहुँचा तो मैं किसी साधन से घर जाना उचित समझा और एक टैक्सी से गाँव के गलियों में घुसा तो लोग हमें घूर-घूर के देख रहे थे और हमारे बाप का नाम लेकर कह रहे थे "कि ससुर चमार इतना मोटासा होय गा अहा कि, टैक्सी से गाँव के अन्दर से अपने घर जात बाटे" उनकी बोली सुन कर मैं आवाक था, लेकिन हमारी हिम्मत नहीं हुयी कि उन लोगो से बात करूँ कि क्या चमार इन्सान नहीं होते उनमें खून नहीं है, वे तुम्हारे लोगों की तरह नहीं खाना खाते कपड़े नहीं पहनते है आखिर क्या कारण है जो तुम लोग ऐसी बातें कर रहे हो..। लेकिन मैं नहीं बोल सका अगर मैं बोल देता तो शायद कुछ अनहोनी ही हो जाती क्यों कि इस गाँव मे ठाकुरों की अधिक संख्या है.. और उन्हीं लोगो का बोल बाला है। वे लोग मनचाहा ही कार्य करते है। यहाँ पर अब भी लम्मरदारी प्रथा थोड़ी बहुत तो है ही, लेकिन मैं जब अपने घर पहुचा तो माँ ने कहा कि बेटवा काहे का टैक्सी से आया पैदल या ताँगा से आवय का रहन जब मैंने पूछा ऐसा क्यों? तो माँ बोली इस गाँव के ठाकुरों को जलन होती है। छोटे लोगों को आगे बढ़ते देख ये लोग जलते हैं। देखो बेचारी अनारा को किसी तरह पैसों का इन्तजाम करके ईट खरीदा है लेकिन उसके बगल के जो घर है वे ठाकुर के और उसे घर नहीं बनाने दे रहे है। उसका 20.000 ईट खराब हो रहा है। इतना ही नहीं इस में अच्छाई तो नहीं है। लेकिन बुराई इतनी ब्याप्त है कि ये जो 10 साल का लड़का भैंस चरा है अगर इसको ये बोल दो कि अपनी भैंस यहाँ मत चराओ तो यह कहेगा कि.. हे चमाइ न फालतू बात करोगी तो मैं हाथ पैर तोड़ दूँगा.. इतना ही नहीं यहाँ पर नाई जो है कोई शादी ब्याह पड़ने पर ठाकुरों के घर बर्तन और चौका तक करते हैं.. और कोई घर पैदा हो तो चमाइन और नाउन को उबटन (बुकवा) लगाना पड़ता है.. अगर इनसे पूछा जाये कि इसकी; मजदूरी क्या मिलती है तो यही कहती है कि 2 किलो गेहूँ , और वे मना कर दे तो समझो कि मरने और मारने पर ये लोग तैयार हो जाते हैं.. इतना नहीं इस गाँव मे एक काली जी की मन्दिर है वहाँ पर नीच जाति मतलब हरिजन आज भी मन्दिर के अन्दर पूजा अर्चना नहीं कर सकते हैं इस गाँव में अगर दीपक लेके ढूँढा जाये तो कोई ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं मिलेगा न वकील, डाक्टर, पुलिस दरोगा, कप्तान नेता, कुछ भी नहीं।
इस गाँव की बुराई कब जायेगी.. यही एक गाँव की यही कहानी नहीं है पूरे क्षेत्र की यही कहानी है। कब होगा, यहाँ शिक्षा का वास कब करेंगे लोग विकास कब मिटेगा जाति-पाति का भेद कब होगा गाँव का उत्थान.. ईश्वर ही जाने....
यह जगह यहाँ पर है...
कलापुर
रानीगंज कैथौला
प्रताप गढ़, उत्तर प्रदेश
Ÿ
इस गाँव की बुराई कब जायेगी.. यही एक गाँव की यही कहानी नहीं है पूरे क्षेत्र की यही कहानी है। कब होगा, यहाँ शिक्षा का वास कब करेंगे लोग विकास कब मिटेगा जाति-पाति का भेद कब होगा गाँव का उत्थान.. ईश्वर ही जाने....
यह जगह यहाँ पर है...
कलापुर
रानीगंज कैथौला
प्रताप गढ़, उत्तर प्रदेश
Ÿ
accha likha hai
ReplyDeletedukriya//
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDeleteaapne satya baaton ko jagjaahir kiya hai .....ab yeh partha dheere dheere samapt hoti jaa rahi hai kyoki logo me awareness zyda se zyada pahuch rahi hai but aapne ek achcha lekh hai ......
ReplyDeleteअलीम जी सोचने की बात ये की हमारे देश को आजाद हुए कितने दिन हो गए और अब लोग वैसे जीवन जिए तो शर्म की ब्बात है,, की नहीं..
ReplyDeleteकडुवा सच... देश आजाद हुआ...जनता तो अभी भी गुलाम है और हमेशा रहेगी। जो पिछडा है वह बदलना नहीं चाहता...दकियानूसी और अन्धविश्वास से ख़ुद हीजुड़े हैं... जो हालत सुधारना चाहे वही दुश्मन मान लिया जाता है...
ReplyDeleteकई हजार साल हो गये यार, अब इस जात-पात को खत्म करो।
ReplyDeleteअभी जहा लोग जिस जाति के अधिक है वहा par unhi ka bol baalaa hai,,
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