हे पुष्प तुम्हारे रस को मई।
सदियों से चूसते आया हूँ॥
तेरे कारण काला हूँ मै।
रूप कलूटा पाया हूँ॥
कलि तेरी खिलने से पहले
उसपर मै मडराताहूँ॥
चूस सुगन्धित रस को तेरे
आत्म्संतुस्ती पाता हूँ॥
काले तन पर नाज़ मुझे है।
तुम भी मुझपर मरती हो॥
चटक-मटक से हरदम रहती।
धुप छाव भी सहती हो॥
रंग बदलते देर न लगाती
तेरा रूप निराला है॥
तेरे अन्दर अर्पण है वह
जो तेरा चाहने वाला..
चढ़ते यौवन आँख मिचौली।
मुझसे करने लगती हो॥
बन थन कर मेरी राह जोहती।
हस हस कर बातें करती हो॥
तेरी महक को हवा में सूंघकर
बड़ी दूर से आया हूँ॥
आते ही तेरी बाहों में
अपनी बाह सताया हूँ॥
जो सुख तेरी इस कलियाँ में।
वह सुख कही न आयेगा॥
रमते जमते कही भी घूमू।
कोई नही मुझको भाएगा॥
सूर्यास्त बाहों में कस कर।
मुझको ले सो जाती हो॥
प्रातः काल संघ मेरे उठती।
फ़िर मुझको नहलाती हो॥
कितना कोई मुझे बुलाये
कही नही मै जाता हूँ॥
तेरे ही द्वारे में आके
तेरी अलख जगाता हूँ॥
हे पुष्प तुम्हारे रस को मई।सदियों से चूसते आया हूँ॥
तेरे कारण काला हूँ मै।रूप कलूटा पाया हूँ॥
सदियों से चूसते आया हूँ॥
तेरे कारण काला हूँ मै।
रूप कलूटा पाया हूँ॥
कलि तेरी खिलने से पहले
उसपर मै मडराताहूँ॥
चूस सुगन्धित रस को तेरे
आत्म्संतुस्ती पाता हूँ॥
काले तन पर नाज़ मुझे है।
तुम भी मुझपर मरती हो॥
चटक-मटक से हरदम रहती।
धुप छाव भी सहती हो॥
रंग बदलते देर न लगाती
तेरा रूप निराला है॥
तेरे अन्दर अर्पण है वह
जो तेरा चाहने वाला..
चढ़ते यौवन आँख मिचौली।
मुझसे करने लगती हो॥
बन थन कर मेरी राह जोहती।
हस हस कर बातें करती हो॥
तेरी महक को हवा में सूंघकर
बड़ी दूर से आया हूँ॥
आते ही तेरी बाहों में
अपनी बाह सताया हूँ॥
जो सुख तेरी इस कलियाँ में।
वह सुख कही न आयेगा॥
रमते जमते कही भी घूमू।
कोई नही मुझको भाएगा॥
सूर्यास्त बाहों में कस कर।
मुझको ले सो जाती हो॥
प्रातः काल संघ मेरे उठती।
फ़िर मुझको नहलाती हो॥
कितना कोई मुझे बुलाये
कही नही मै जाता हूँ॥
तेरे ही द्वारे में आके
तेरी अलख जगाता हूँ॥
हे पुष्प तुम्हारे रस को मई।सदियों से चूसते आया हूँ॥
तेरे कारण काला हूँ मै।रूप कलूटा पाया हूँ॥
आप का ब्लोग मुझे बहुत अच्छा लगा और आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteबबली जी शुक्रिया..
ReplyDeleteaapne to pushp aur bhramar ko alag hi rang de diya.
ReplyDeleteवंदना जी पुष्प को रंग चाहिए था ओउर भ्रमर को रूप ..
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