आज के दिन की शरुआत हम कर रहे है अमित दुबे जी की इस कविता के साथ! अमित जी एक मंझे हुए लेखक है और एक न्यूज़ चैनल में काम करते है,यह हिन्दुस्तान का दर्द के अच्छे सहयोगी है और समय-समय पर अपनी रचनाएँ हम तक पहुंचाते रहते है! तो कैसी लगी आपको अमित जी की यह रचना अपनी राय हम तक भेजें!
भूखी जनता सूखे खेत, वादों से नहीं भरता पेट।
जनता हो गई होशियार, वादा नहीं चाहिए रोजगार।।
5 साल बाद फिर आई है जनता की बारी।
केवल वादे करने वाले, कर लें जाने की तैयारी।।
अब ना चलेगी किसी तरह की कोई मनमानी।
क्योंकि देश की जनता ने सबक सिखाने को ठानी।।
आने वाले ने नए चेहरों से भी यही है कहना।
जनता की मांगों पर सबसे पहले गौर करना।।
जनता नहीं चाहती नारे और शोर।
वरना खींच डालेगी की कुर्सी की डोर।।
हर पार्टी से जनता की है गहरी नाता।
चुनाव-चिह्न नहीं, उन्हें रोटी और रोजगार भाता।।
देश की जनता से भी एक अर्जी।
वोट डालकर, जाहिर कर देना अपनी मर्जी।।
क्योंकि...भूखी आधी आबादी है। ये कैसी आजादी है?
जनता हो गई होशियार, वादा नहीं चाहिए रोजगार।।
5 साल बाद फिर आई है जनता की बारी।
केवल वादे करने वाले, कर लें जाने की तैयारी।।
अब ना चलेगी किसी तरह की कोई मनमानी।
क्योंकि देश की जनता ने सबक सिखाने को ठानी।।
आने वाले ने नए चेहरों से भी यही है कहना।
जनता की मांगों पर सबसे पहले गौर करना।।
जनता नहीं चाहती नारे और शोर।
वरना खींच डालेगी की कुर्सी की डोर।।
हर पार्टी से जनता की है गहरी नाता।
चुनाव-चिह्न नहीं, उन्हें रोटी और रोजगार भाता।।
देश की जनता से भी एक अर्जी।
वोट डालकर, जाहिर कर देना अपनी मर्जी।।
क्योंकि...भूखी आधी आबादी है। ये कैसी आजादी है?
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very nice post..thanks
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