Loksangharsha: घर जला रहे है
बुझानी थी आग जिनको वही घर जला रहे है।
निभानी वफ़ा थी जिनको वही घर जला रहे है।
हसरत थी आसमां को छु लेंगे झूमकर
परवाज खो चुके जो वही घर जला रहे है ॥
एक घर की आग से ही जलती है बस्तियां,
मेरे रफीक फ़िर भी मेरा घर जला रहे है॥
अहले हयात ख्वाहिशों में यूँ सिमट गई
हमराज हमसफ़र मेरा घर जला रहे है ॥
घर जला रहे है
बुझानी थी आग जिनको वही घर जला रहे है।
निभानी वफ़ा थी जिनको वही घर जला रहे है।
हसरत थी आसमां को छु लेंगे झूमकर
परवाज खो चुके जो वही घर जला रहे है ॥
एक घर की आग से ही जलती है बस्तियां,
मेरे रफीक फ़िर भी मेरा घर जला रहे है॥
अहले हयात ख्वाहिशों में यूँ सिमट गई
हमराज हमसफ़र मेरा घर जला रहे है ॥
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--- संजय सेन सागर