अब हम कलम का सिपाही कविता प्रतियोगिता के इस क्रम में जो कविता प्रकाशित कर रहे है उसे लिखा है रोहित जी ने !
हम रोहित जी को हार्दिक बधाई देते है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है !
आप सभी से आग्रह है की इस कविता पर अपनी राय दें !
खो देना चहती हूँ तुम्हें..
सही है कि तुम चले गये, दूर अब मुझसे हो गये
इतने वक़्त से भी कहाँ करीब थे, पर अब फाँसले सदा के लिए हो गये
बात करने का तुमसे मन नहीं, कोई जवाब तुम्हारे खयाल का देना नहीं
ना तुमसे कोई रिश्ता, ना अब कोई और चाह रही
काश की तुम बीते दिनों से भी मिट जाओ, तुम्हारी यादें इस कोहरे में कहीं गुम जायें
काश कि तुम्हारा नाम मुझे फिर याद न आये, ये याद रहे कि तुम मेरे कोई नहीं
जो हो तुम मेरे कोई नहीं तो फिर भी क्यूं याद करती हूँ ये कह कर कि तुम मेरे 'कोई नही'
चले जाओ तुम मेरे शब्दों से, ख्यालों से, इस वक्ये के बाद तो तुम जा चुके हो मेरे सपनों से भी
नाम लेते ही साँसों में अब भी हलचल सी क्यूँ होती है
क्यूँ किसी बात की आशा अब भी रहती है
हाथों से तुम्हें छिटकना चाहती हूँ फिर भी एहसास छूटता क्यूँ नहीं
चलते हुये गिरती हूँ तो आज भी क्यूँ तुम्हारा हाथ बढा देना याद आता है
ये दिन - यह वाक्या बीता है तो फिर इसी तरह ज़िन्दगी आगे भी बढ जायेगी
तुम्हारा तो पता नहीं, मुझे 'बूढे हो जाने पर ये-वो होगा' - वाली बातें याद आयेगीं
चाहती हूँ इस सबके बाद भी तुमसे कभी मुलाकात ना हो
सामना करने की हिम्मत जो खो बैठी हूँ
सूरत-सीरत, अन्दाज़ और तलफ्फुज़् सब बदल गये हैं
बहुत डर लगता है अपने इस बद्ले हुए रूप से
काफी चीज़े छोड आयीं हूँ पीछे
वो तभी के लिये सही थी
अब तो उन्हें साथ लिये ज़िन्दगी जीना भी कठिन है
खुश रहो तुम सदा, बहुत बडे बनो
ज़िन्दगी का हर मकाम तुम्हें हासिल हो, ये तमन्ना है मेरी
बस तुमसे सामना ना हो फिर कभी, ये ख्वाहिश बाकी रहेगी
हम रोहित जी को हार्दिक बधाई देते है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है !
आप सभी से आग्रह है की इस कविता पर अपनी राय दें !
खो देना चहती हूँ तुम्हें..
सही है कि तुम चले गये, दूर अब मुझसे हो गये
इतने वक़्त से भी कहाँ करीब थे, पर अब फाँसले सदा के लिए हो गये
बात करने का तुमसे मन नहीं, कोई जवाब तुम्हारे खयाल का देना नहीं
ना तुमसे कोई रिश्ता, ना अब कोई और चाह रही
काश की तुम बीते दिनों से भी मिट जाओ, तुम्हारी यादें इस कोहरे में कहीं गुम जायें
काश कि तुम्हारा नाम मुझे फिर याद न आये, ये याद रहे कि तुम मेरे कोई नहीं
जो हो तुम मेरे कोई नहीं तो फिर भी क्यूं याद करती हूँ ये कह कर कि तुम मेरे 'कोई नही'
चले जाओ तुम मेरे शब्दों से, ख्यालों से, इस वक्ये के बाद तो तुम जा चुके हो मेरे सपनों से भी
नाम लेते ही साँसों में अब भी हलचल सी क्यूँ होती है
क्यूँ किसी बात की आशा अब भी रहती है
हाथों से तुम्हें छिटकना चाहती हूँ फिर भी एहसास छूटता क्यूँ नहीं
चलते हुये गिरती हूँ तो आज भी क्यूँ तुम्हारा हाथ बढा देना याद आता है
ये दिन - यह वाक्या बीता है तो फिर इसी तरह ज़िन्दगी आगे भी बढ जायेगी
तुम्हारा तो पता नहीं, मुझे 'बूढे हो जाने पर ये-वो होगा' - वाली बातें याद आयेगीं
चाहती हूँ इस सबके बाद भी तुमसे कभी मुलाकात ना हो
सामना करने की हिम्मत जो खो बैठी हूँ
सूरत-सीरत, अन्दाज़ और तलफ्फुज़् सब बदल गये हैं
बहुत डर लगता है अपने इस बद्ले हुए रूप से
काफी चीज़े छोड आयीं हूँ पीछे
वो तभी के लिये सही थी
अब तो उन्हें साथ लिये ज़िन्दगी जीना भी कठिन है
खुश रहो तुम सदा, बहुत बडे बनो
ज़िन्दगी का हर मकाम तुम्हें हासिल हो, ये तमन्ना है मेरी
बस तुमसे सामना ना हो फिर कभी, ये ख्वाहिश बाकी रहेगी
रोहित जी आपकी कविता कलम का सिपाही प्रतियोगिता के अंतर्गत हिन्दुस्तान का दर्द पर प्रकाशित की जा चुकी है !
ReplyDeleteआपकी कविता ठीक तरह से नहीं भेजी गयी इसलिए तकनीकी समस्या नजर आ रही है !
अगली बार थोडा ध्यान दें !
आपको बधाई हो...
अपनी रचना पढें :-
http://yaadonkaaaina.blogspot.com/2009/03/blog-post_07.html
संजय सेन सागर
संपादक
09907048438
रोहित जी बधाई हो
ReplyDeleteअच्छी रचना बस जमकर नहीं लिखा गया