Skip to main content

मेरे मुहताज आंसू छलक जायेंगे!


की एक पेशकश

नाम उनका जहाँ भी लिया जायेगा
ज़िक्र उनका जहाँ भी किया जायेगा

नूर ही नूर सीनों में भर जायेगा
सारी महफ़िल में जलवे चमक जायेंगे

ऐ मोहब्बत के मारे, खुदा के लिए
सफरे उल्फत मुझको यु न सुना

बात बढ़ जायेगी दिल तड़प जायेगा
मेरे मुहताज आंसू छलक जायेंगे

उनकी जश्ने करम को है इसकी खबर
इस मुसाफिर को है कितना शौक़ ऐ सफ़र

हमको इक बार जब भी इजाज़त मिली
हम भी उस के दर तक पहुँच जायेंगे

फासलों से तक़ल्लुफ़ है उनको अगर
हम भी बेबस नहीं, बेसहारा नहीं

खुद उन्ही को पुकारेंगे हम दूर से
राह में अगर पैर थक जायेंगे

हम शहर में तनहा निकल जायेंगे
और गलियों में क़सदन* भटक जायेंगे

हम वहां जाके वापस नहीं आयेंगे
ढून्ते-ढून्ते लोग थक जाएँगे

जैसे ही उनका आशियाँ नज़र आएगा
दिल का आलम ऐसे बदल जायेगा

हसने हँसाने की फुर्सत मिलेगी किसे
खुद ही होंटों से मुस्कान टपक जाएँगी

*जानबूझ कर

Comments

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा