की एक पेशकश
नाम उनका जहाँ भी लिया जायेगा
ज़िक्र उनका जहाँ भी किया जायेगा
नूर ही नूर सीनों में भर जायेगा
सारी महफ़िल में जलवे चमक जायेंगे
ऐ मोहब्बत के मारे, खुदा के लिए
सफरे उल्फत मुझको यु न सुना
बात बढ़ जायेगी दिल तड़प जायेगा
मेरे मुहताज आंसू छलक जायेंगे
उनकी जश्ने करम को है इसकी खबर
इस मुसाफिर को है कितना शौक़ ऐ सफ़र
हमको इक बार जब भी इजाज़त मिली
हम भी उस के दर तक पहुँच जायेंगे
फासलों से तक़ल्लुफ़ है उनको अगर
हम भी बेबस नहीं, बेसहारा नहीं
खुद उन्ही को पुकारेंगे हम दूर से
राह में अगर पैर थक जायेंगे
हम शहर में तनहा निकल जायेंगे
और गलियों में क़सदन* भटक जायेंगे
हम वहां जाके वापस नहीं आयेंगे
ढून्ते-ढून्ते लोग थक जाएँगे
जैसे ही उनका आशियाँ नज़र आएगा
दिल का आलम ऐसे बदल जायेगा
हसने हँसाने की फुर्सत मिलेगी किसे
खुद ही होंटों से मुस्कान टपक जाएँगी
*जानबूझ कर
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--- संजय सेन सागर