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चेतन आनंद/नेपाल-बवाल

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चेतन आनंद /हिंदी

14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर विशेष लेख- विश्व में तीसरे स्थान पर हिन्दी क्यों नहीं बन पाई राष्ट्रभाषा? भाषा किसी भी राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर और पहचान होती है। इसके पीछे कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और तकनीकी कारण हैं। आज विश्व की भाषाओं की भीड़ में हिंदी का स्थान शीर्ष तीन में है। यह केवल बोलने वालों की संख्या से ही नहीं, बल्कि साहित्यिक वैभव, प्रवासी भारतीयों के योगदान, फ़िल्मों और तकनीक के विस्तार से भी वैश्विक मंच पर स्थापित है। आने वाले वर्षों में हिंदी न केवल एशिया बल्कि विश्व की प्रमुख सांस्कृतिक और डिजिटल भाषा के रूप में और भी मज़बूती से उभरेगी। हिंदी आज केवल भारतीय उपमहाद्वीप तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक संवाद, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और डिजिटल क्रांति की भाषा बन चुकी है। बावजूद इसके ली हमारे भारत देश की राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन पा रही। आइये इसकी पड़ताल करते हैं। सबसे पहले हमें औपनिवेशिक काल की ओर देखना होगा। अंग्रेज़ी ने भारत की शिक्षा, प्रशासन और न्याय प्रणाली पर गहरा असर डाला। स्वतंत्रता के बाद भी अंग्रेज़ी का वर्चस्व कायम रहा, जबकि हिंदी को अपेक्षित बढ़ावा नहीं मिल पाय...

रिश्तों की गरिमा की पुनर्स्थापना का यक्ष प्रश्न

अशोक मधुप −−−−−−−− आज जगह – जगह रिश्तों का खून हो रहा है। हैं।हालत यह है कि बाप बेटी को मार रहा है ।बेटी बाप को मार रही है ।पति-पत्नी को मार रहा है। पत्नी −पति की हत्याकर रही है।भाई− बहिन को मारते नही झिझक रहा तो भाई की हत्या करते बहन के हाथ नही कांप रहे।मां − बेटे और बेटी का हत्या कर रही है तो बेटा और बेटी मां को ही नही बाप की भी हत्या कर रहे हैं।ऐसा लगता है कि भारत की परिवार व्यवस्था टूट चुकी है। रिश्तों पर स्वार्थ हावी हो गया है।   −−−−−−− आज समाज का सबसे दुखद और चिंताजनक पहलू यह है कि जिन रिश्तों को सबसे पवित्र और मजबूत माना जाता है , वहीं रिश्ते टूट रहे हैं और हिंसा का शिकार हो रहे हैं। समाचार पत्र और टीवी चैनल लगभग रोज़ाना ऐसी ख़बरें दिखाते हैं।हालत यह है कि बाप बेटी को मार रहा है ।बेटी बाप को मार रही है ।पति-पत्नी को मार रहा है। पत्नी −पति की हत्याकर रही है।भाई− बहिन को मारते नही झिझक रहा तो भाई की हत्या करते बहन के हाथ नही कांप रहे।मां बेटे और बेटी का हत्या कर रही है तो बेटा और बेटी मां को ही नही बाप की भी हत्या कर रहे हैं।ऐसा लगता है कि भारत की परिवार व्यवस्था ...

चेतन आनंद

12 सितम्बर महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि पर विशेष लेख- महादेवी वर्मा और छायावाद की समकालीन कवयित्रियां                                                                -डॉ. चेतन आनंद छायावाद हिंदी साहित्य का अत्यंत महत्त्वपूर्ण काव्य आंदोलन (1918-1936) माना जाता है। इसे “हिंदी काव्य का स्वर्णयुग“ भी कहा गया है। इस युग में कवियों ने भावुकता, रहस्यवाद, प्रकृति-सौंदर्य, प्रेम, करुणा और मानवीय संवेदनाओं को आत्मानुभूति के साथ प्रस्तुत किया। पुरुष कवियों में जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ प्रमुख हैं, वहीं महिला कवयित्रियों में महादेवी वर्मा इस युग की सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि मानी जाती हैं। उन्होंने न केवल छायावाद को ऊँचाई दी, बल्कि आगे की प्रगतिवादी और नारीवादी काव्यधारा के लिए भी पथ प्रशस्त किया। उनके साथ सुभद्राकुमारी चौहान जैसी कवयित्रियाँ युग की राष्ट्रवादी चेतना की प्रतिनिधि बनकर सामने आईं। महादेवी वर्मा (190...

सितंबर ५, शिक्षक, सॉनेट, पुनरुक्ति अलंकार, सरस्वती, प्रातस्मरण स्तोत्र, कायस्थ, नवगीत

फुलबगिया विमोचित रामबोड़ा श्रीलंका, ३० अगस्त २०२५। संस्कारधानी की भजनीक स्व. शांति देवी वर्मा की कृति राम नाम सुखदाई', भजन गायक दुर्गेश ब्यौहार लिखित 'रामायण भजनावली' तथा आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा संपादित १२१ फूलों पर ७७ ओं की २७० रचनाओं का साझा संकलन 'फुलबगिया' का लोकार्पण, 'अशोक वाटिका' में, हनुमान जी के पवित्र पगचिन्ह के निकट, सीता नदी के पवित्र सलिल प्रवाह के मध्य हिंदीविद प्रोफेसर अर्जुन चव्हाण की अध्यक्षता, मुख्य अतिथि प्रो. प्रदीप सिंह के मुख्यातिथ्य, आचार्य इं. संजीव वर्मा 'सलिल', इं. दुर्गेश ब्योहार 'दर्शन' , प्रो. वीणा सिंह, प्रो. सतीश कनौजिया की विशेष उपस्थिति में संपन्न हुआ। सांस्कृतिक शोध संस्थान मुंबई तथा विश्व वाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न इस अंतर्राष्ट्रीय सारस्वत अनुष्ठान में मारिशस से पधारे दंपत्ति डॉ. ज्ञान धनुक चंद-डॉ. मिला धनुकचंद, डॉ. शीरीन कुरेशी इंदौर, हुस्न तबस्सुम 'निहां' मुंबई, प्रो. ऊषा शाह कोलकाता, ललित सिंह ठाकुर भाटापारा, डॉ. सुरेन्द्र साहू-श्रीमती साधना...