मुक्तिका :
संजीव 'सलिल'
*
काम रहजन का करे नाम से रहबर क्यों है?
मौला इस देश का नेता हुआ कायर क्यों है??
खोल अखबार- खबर सच से बेखबर क्यों है?
फिर जमीं पर कहीं मस्जिद, कहीं मंदर क्यों है?
जो है खूनी उकाब उसको अता की ताकत.
भोला-मासूम परिंदा नहीं जबर क्यों है??
जिसने पैदा किया तुझको तेरी औलादों को.
आदमी के लिए औरत रही चौसर क्यों है??
एक ही माँ ने हमें दूध पिलाकर पाला.
पीठ हिन्दोस्तां की पाक का खंजर क्यों है??
लाख खाता है कसम रोज वफ़ा की आदम.
कर न सका आज तलक बोल तो जौहर क्यों है??
पेट पलता है तेरा और मेरा भी जिससे-
कामचोरी की जगह, बोल ये दफ्तर क्यों है??
ना वचन सात, ना फेरे ही लुभाते तुझको.
राह देखा किया जिसकी तू, वो कोहबर क्यों है??
हर बशर चाहता औरत तो पाक-साफ़ रहे.
बाँह में इसको लिए, चाह में गौहर क्यों है??
पढ़ के पुस्तक कोई नादान से दाना न हुआ.
ढाई आखर न पढ़े, पढ़ के निरक्षर क्यों है??
फ़ौज में क्यों नहीं नेताओं के बेटे जाते?
पूछा जनता ने तो नेता जी निरुत्तर क्यों है??
बूढ़े माँ-बाप की खातिर न जगह है दिल में.
काट-तन-पेट खड़ा तुमने किया घर क्यों है??
तीन झगड़े की वज़ह- जर, जमीन, जोरू हैं.
ये अगर सच है तो इन बिन न रहा नर क्यों है??
रोज कहते हो तुम: 'हक समान है सबको"
ये भी बोलो, कोई बेहतर कोई कमतर क्यों है??
अब न जुम्मन है, न अलगू, न रही खाला ही.
कौन समझाए बसा प्रेम में ईश्वर क्यों है??
रुक्न का, वज्न का, बहरों का तनिक ध्यान धरो.
बा-असर थी जो ग़ज़ल, आज बे-असर क्यों है??
दल-बदल खूब किया, दिल भी बदल कर देखो.
एक का कंधा रखे दूसरे का सर क्यों है??
दर-ब-दर ये न फिरे, वे भी दर-ब-दर न फिरे.
आदमी आम ही फिरता रहा दर-दर क्यों है??
कहकहे अपने उसके आँसुओं में डूबे हैं.
निशानी अपने बुजुर्गों की गुम शजर क्यों है??
लिख रहा खूब 'सलिल', खूबियाँ नहीं लेकिन.
बात बेबात कही, ये हुआ अक्सर क्यों है??
कसम खुदा की, शपथ राम की, लेकर लड़ते.
काले कोटों का 'सलिल', संग गला तर क्यों है??
बेअसर प्यार मगर बाअसर नफरत है 'सलिल'.
हाय रे मुल्क! सियासत- जमीं बंजर क्यों है??
************************************************
रहजन = राह में लूटनेवाला, रहबर = राह दिखानेवाला, मौला = ईश्वर, उकाब = बाज, अता करना = देना, जबर = शक्तिवान, बशर = व्यक्ति, गौहर = अपने समय की सर्वाधिक प्रसिद्ध वैश्या, नादान = नासमझ, दाना = समझदार, रुक्न = लयखंड, वज्न = पदभार , बहर = छंद, बेअसर = प्रभावहीन, बा-असर = प्रभावपूर्ण, शजर = वृक्ष, जमीं = भूमि.
संजीव 'सलिल'
*
काम रहजन का करे नाम से रहबर क्यों है?
मौला इस देश का नेता हुआ कायर क्यों है??
खोल अखबार- खबर सच से बेखबर क्यों है?
फिर जमीं पर कहीं मस्जिद, कहीं मंदर क्यों है?
जो है खूनी उकाब उसको अता की ताकत.
भोला-मासूम परिंदा नहीं जबर क्यों है??
जिसने पैदा किया तुझको तेरी औलादों को.
आदमी के लिए औरत रही चौसर क्यों है??
एक ही माँ ने हमें दूध पिलाकर पाला.
पीठ हिन्दोस्तां की पाक का खंजर क्यों है??
लाख खाता है कसम रोज वफ़ा की आदम.
कर न सका आज तलक बोल तो जौहर क्यों है??
पेट पलता है तेरा और मेरा भी जिससे-
कामचोरी की जगह, बोल ये दफ्तर क्यों है??
ना वचन सात, ना फेरे ही लुभाते तुझको.
राह देखा किया जिसकी तू, वो कोहबर क्यों है??
हर बशर चाहता औरत तो पाक-साफ़ रहे.
बाँह में इसको लिए, चाह में गौहर क्यों है??
पढ़ के पुस्तक कोई नादान से दाना न हुआ.
ढाई आखर न पढ़े, पढ़ के निरक्षर क्यों है??
फ़ौज में क्यों नहीं नेताओं के बेटे जाते?
पूछा जनता ने तो नेता जी निरुत्तर क्यों है??
बूढ़े माँ-बाप की खातिर न जगह है दिल में.
काट-तन-पेट खड़ा तुमने किया घर क्यों है??
तीन झगड़े की वज़ह- जर, जमीन, जोरू हैं.
ये अगर सच है तो इन बिन न रहा नर क्यों है??
रोज कहते हो तुम: 'हक समान है सबको"
ये भी बोलो, कोई बेहतर कोई कमतर क्यों है??
अब न जुम्मन है, न अलगू, न रही खाला ही.
कौन समझाए बसा प्रेम में ईश्वर क्यों है??
रुक्न का, वज्न का, बहरों का तनिक ध्यान धरो.
बा-असर थी जो ग़ज़ल, आज बे-असर क्यों है??
दल-बदल खूब किया, दिल भी बदल कर देखो.
एक का कंधा रखे दूसरे का सर क्यों है??
दर-ब-दर ये न फिरे, वे भी दर-ब-दर न फिरे.
आदमी आम ही फिरता रहा दर-दर क्यों है??
कहकहे अपने उसके आँसुओं में डूबे हैं.
निशानी अपने बुजुर्गों की गुम शजर क्यों है??
लिख रहा खूब 'सलिल', खूबियाँ नहीं लेकिन.
बात बेबात कही, ये हुआ अक्सर क्यों है??
कसम खुदा की, शपथ राम की, लेकर लड़ते.
काले कोटों का 'सलिल', संग गला तर क्यों है??
बेअसर प्यार मगर बाअसर नफरत है 'सलिल'.
हाय रे मुल्क! सियासत- जमीं बंजर क्यों है??
************************************************
रहजन = राह में लूटनेवाला, रहबर = राह दिखानेवाला, मौला = ईश्वर, उकाब = बाज, अता करना = देना, जबर = शक्तिवान, बशर = व्यक्ति, गौहर = अपने समय की सर्वाधिक प्रसिद्ध वैश्या, नादान = नासमझ, दाना = समझदार, रुक्न = लयखंड, वज्न = पदभार , बहर = छंद, बेअसर = प्रभावहीन, बा-असर = प्रभावपूर्ण, शजर = वृक्ष, जमीं = भूमि.
बहुत सुन्दर पोस्ट,बधाई.
ReplyDeleteकृपया इसे भी पढ़े -- राष्ट्र-हित में एक खुशखबरी
http://www.ashokbajaj.com/
bahut khub sir ji ...........jitni tareef ki jay kam hai .........lekhni kamaal ki lagi ...
ReplyDelete