1990 पहुंचते-पहुंचते दलित और पिछड़े वर्ग में भी आकांक्षाओं ने हिलोरे मारना शुरू कर दिया था। अब वो जगजीवन राम की तरह सिर्फ ऊंची जातियों के शो-पीस बनने को तैयार नहीं थे। उन्हें सत्ता में भागीदारी चाहिए थी। मांग उठने लगी कि संख्याबल में ज्यादा हैं तो सत्ता भी हमारी हो। दबाव बना तो वी पी सिंह को सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण देना पड़ा। मुलायम, लालू, रामविलास पासवान, शरद यादव, नीतीश कुमार, कांशीराम, मायावती, कल्याण सिंह, उमा भारती सत्ता के नए केंद्र हो गए। उच्च जातियों वाली बीजेपी में गोविंदाचार्य जैसे लोग सोशल इंजीनियरिंग की वकालत करने लगे।
राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर बेचैनी बढ़ती जा रही थी। सिर्फ अर्थतंत्र के पास इसका इलाज था लेकिन वो खुद आईसीयू में पड़ा था। फिर कांग्रेस से उसका मोहभंग हो चुका था। लोगों ने देखा कि गांधी-नेहरू की पार्टी भ्रष्टाचार की पर्याय बन गई है। उनके अपने प्रतिनिधि नेता की जगह चाटुकार मंत्री बन गए हैं। पार्टी में लोकतंत्र खत्म हो गया है। जनता को विकल्प खोजना ही था। उसे एक नए नेता की तलाश थी। जो उसकी गरीबी को दूर कर सके। बेरोजगारी पर लगाम लगाए। घिसी पिटी बातें न करे। नए सिरे से सोचे और नया सपना बेचे। कांग्रेस में ऐसा कोई नहीं था। एक तबके को लालकृष्ण आडवाणी में नेता दिखा और बीजेपी में अपना भविष्य। अर्थतंत्र की सताई जनता, मंडल और कमंडल में बंटी जनता को अपनी ऊर्जा, अपना फ्रस्टेशन कहीं न कहीं तो निकालना ही था। ऐसे में अगर नेतृत्व सही न हो तो निर्माण की जगह विध्वंस होता है। 6 दिसंबर इसका सबसे बड़ा प्रमाण बना।
आज वो हालात नहीं हैं। अर्थव्यवस्था अपने शिखर पर है। अभी पिछले ही महीने कार बिकने का नया रिकार्ड बना है। पिछले क्वार्टर में इंडस्ट्री ने 13 फीसदी की विकास दर दिखाई है। और इस बात की पूरी संभावना है कि आउटसोर्सिंग पर अमेरिकी खतरे के बावजूद अर्थव्यवस्था 9 फीसदी का आंकड़ा छू लेगी। हिंदुस्तान का मध्यवर्ग इस वक्त बम बम है। उसकी जेब गरम है। वो वीकेंड पर मॉल जाता है, जी भर के खरीददारी करता है, 'ईटिंग आउट' उसका नया पैशन है। छोटी कार से संतुष्ट नहीं होता, उसे लंबी बड़ी लक्जरी कार में मजा आता है। हर दो महीने पर वो सेलफोन बदल लेता है और गर्लफ्रेंड भी। मंदी के बावजूद तनख्वाह में कमी नहीं है। एयरपोर्ट अब रेलवे स्टेशन लगने लगे हैं। तो सड़कों पर उतरेगा कौन? फिर उसने सारे विकल्प देख लिए हैं। उनका भी जो 'रामराज' का सपना दिखाते थे और उनका भी जो 'मंडलराज को स्वर्ग' बताते थे।
उसने देखा कि त्याग को हिंदुत्व का मूल बताने वाली पार्टी का 82 वर्षीय नेता नई पीढ़ी के लिए मार्ग प्रशस्त करने को तैयार नहीं होता। पिछड़े नेता का शासन 'जंगलराज' से भी बदतर था। दलित की बेटी ने भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। तो क्या करेगा वो? 24 को फैसला आएगा। कुछ लोग शोर मचाएंगे, माहौल बिगाड़ने की कोशिश भी होगी लेकिन वो कामयाब तब होंगे जब उनकी कोई सुनेगा। वो इसलिए नहीं सुनेगा कि वो बहरा है? बल्कि इसलिए कि उसका पेट भरा है और वो जानता है कि फुंके हुए कारतूसों से निशाना नहीं लगता। और मैं भी अब पत्रकार हो गया हूं।
???????????
ReplyDelete