पोंगा पंडित सर मुड़ा के॥
आये थे जब काशी से॥
घरवाली ने नज़र उतारा॥
काली वाली लाठी॥
एक लाठी के पड़ते खन॥
पंडित कय फूटा कपार॥
हाय हाय पंडित जी रोवे॥
निकली खूने कय बौछार॥
अकड़ के बोलिस पंडित कय मेहर॥
pitwaaugi मदरासी से॥
गाँव वाली सब भाग के आये॥
पोगापंडित आया है॥
बहुत दिनों बाद गाँव में॥
अपनी शक्ल देखाया है॥
मह्तुनिया से बात करत है॥
बोल रही झाकरासी से॥
आये थे जब काशी से॥
घरवाली ने नज़र उतारा॥
काली वाली लाठी॥
एक लाठी के पड़ते खन॥
पंडित कय फूटा कपार॥
हाय हाय पंडित जी रोवे॥
निकली खूने कय बौछार॥
अकड़ के बोलिस पंडित कय मेहर॥
pitwaaugi मदरासी से॥
गाँव वाली सब भाग के आये॥
पोगापंडित आया है॥
बहुत दिनों बाद गाँव में॥
अपनी शक्ल देखाया है॥
मह्तुनिया से बात करत है॥
बोल रही झाकरासी से॥
लगे रहिए.... मुन्ना भाई । सफलता आपके चरण चूमेगी।
ReplyDeleteसद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
dhanyavaad sir.......
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