आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा
कुण्डलिनी
करुणा संवेदन बिना, नहीं काव्य में तंत..
करुणा रस जिस ह्रदय में वह हो जाता संत.
वह हो जाता संत, न कोई पीर परायी.
आँसू सबके पोंछ, लगे सार्थकता पाई.
कंकर में शंकर दिखते, होता मन-मंथन.
'सलिल' व्यर्थ है गीत, बिना करुणा संवेदन.
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http://divyanarmada.blogspot.com
कुण्डलिनी
करुणा संवेदन बिना, नहीं काव्य में तंत..
करुणा रस जिस ह्रदय में वह हो जाता संत.
वह हो जाता संत, न कोई पीर परायी.
आँसू सबके पोंछ, लगे सार्थकता पाई.
कंकर में शंकर दिखते, होता मन-मंथन.
'सलिल' व्यर्थ है गीत, बिना करुणा संवेदन.
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर