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डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल .....

मिली हवाओं में उड़ने की ये सज़ा यारो।
कि मैं जमीं के रिश्तों से गया कट यारो।

देख परफ्यूम , आई-पोड सजे मालों को,
जी चमेली की गंध से गया हट यारो।

मस्त रेस्त्रां के वो सिज़लर औ विदेशी डिश में,
भूला चौके की वो भीनी सी गंध तक यारो।

पल में उड़कर के हवा में हर शहर जाऊं ,
हमसफ़र, राह औ किस्सों से गया कट यारो।

आधुनिक चलन है, बोतल का नीर पीते हैं ,
नीर नदियों का तो कीचड से गया पट यारो।

जब से उड़ने लगे हम ,श्याम' प्रगति के पथ पर,
अपनी संस्कृति से ही मानव गया नट यारो॥





Comments

  1. मिली हवाओं में उड़ने की ये सज़ा यारो।
    कि मैं जमीं के रिश्तों से गया कट यारो।

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  2. बहुत खूब..श्याम जी बहुत सुन्दर रचना...

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  3. mai har-pal us-pal ko jiney key liye gaya taras yaaron...

    Doctor Saab, bohot hi badiyan... dil ko chu gayi aapki rachna...

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--- संजय सेन सागर