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लगते सोलहवे साल में यार क्यों बिछड़ते है॥


मेरे घर की छत पर फूल क्यों निकलते है॥

लगते सोलहवे साल में पुष्प क्यों निकलते है॥

अंखिया चकोर बन के ढूढे लागी मोती॥

आश मेरे भाग्य में ये वाली होती॥

मन में विचार मेरे यूं क्यों निकलते है॥

लगते सोलहवे साल में यार क्यों बिछड़ते है॥

सुभ घडी आएगी जब मुलाक़ात होगी॥

ले लूगी आनंद जब वह रात होगी॥

बिना आग के ऐसे दीप क्यों जलते है॥

लगते सोलहवे साल में यार क्यों बिछड़ते है॥

देख के सलोनो को मुह हंस बोले॥

अंखिया से उनकी सुरतिया टटोले॥

मेरी भी चाह में वे भी तड़पते है॥

लगते सोलहवे साल में यार क्यों बिछड़ते है॥

Comments

  1. apni kawitaa ke jariye apne hrdyee bhaawon ko vyakt karne kaa tareekaa atyant sundar hai allmost kawitaa achchhee hai

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  2. उत्तम कविता

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  3. अति सुन्दर मुक्तकों के लिए बधाई स्वीकारें।

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  4. chauhan saab,rahul ji, and Dr, saab...

    hamara manobal badhane ke liye hardik shukriyaa...

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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