मेरे घर की छत पर फूल क्यों निकलते है॥
लगते सोलहवे साल में पुष्प क्यों निकलते है॥
अंखिया चकोर बन के ढूढे लागी मोती॥
आश मेरे भाग्य में ये वाली होती॥
मन में विचार मेरे यूं क्यों निकलते है॥
लगते सोलहवे साल में यार क्यों बिछड़ते है॥
सुभ घडी आएगी जब मुलाक़ात होगी॥
ले लूगी आनंद जब वह रात होगी॥
बिना आग के ऐसे दीप क्यों जलते है॥
लगते सोलहवे साल में यार क्यों बिछड़ते है॥
देख के सलोनो को मुह हंस बोले॥
अंखिया से उनकी सुरतिया टटोले॥
मेरी भी चाह में वे भी तड़पते है॥
लगते सोलहवे साल में यार क्यों बिछड़ते है॥
phool kyo baraste hai..
ReplyDeleteapni kawitaa ke jariye apne hrdyee bhaawon ko vyakt karne kaa tareekaa atyant sundar hai allmost kawitaa achchhee hai
ReplyDeleteउत्तम कविता
ReplyDeleteअति सुन्दर मुक्तकों के लिए बधाई स्वीकारें।
ReplyDeletechauhan saab,rahul ji, and Dr, saab...
ReplyDeletehamara manobal badhane ke liye hardik shukriyaa...