आँख से आंसू निकलते आके इसको थाम लो॥
य तो अपने पास बुला लो य तो मुझको मार दो॥
सहन होती नहीं बिरह के आग में जल रही हूँ॥
सब्र अब टूट चुका है बिन तेरे तड़पती हूँ॥
अब आके मेरा हाथ थामो बंधन में मुझको बाँध दो॥
शाम होते ही मातम जवानी पे छा जाता है॥
सावन का सौभाग्य पास अपने बुलाता है॥
मै डूबती हूँ अधर में हे यार मुझे उबार लो॥
मैंने सजाया था जो सपना उसे टूटने मत देना॥
अपने दिल के कोने में हमें ही बसा लेना॥
दिल से जब दिल मिले बस एक बार पुचकार दो॥
य तो अपने पास बुला लो य तो मुझको मार दो॥
सहन होती नहीं बिरह के आग में जल रही हूँ॥
सब्र अब टूट चुका है बिन तेरे तड़पती हूँ॥
अब आके मेरा हाथ थामो बंधन में मुझको बाँध दो॥
शाम होते ही मातम जवानी पे छा जाता है॥
सावन का सौभाग्य पास अपने बुलाता है॥
मै डूबती हूँ अधर में हे यार मुझे उबार लो॥
मैंने सजाया था जो सपना उसे टूटने मत देना॥
अपने दिल के कोने में हमें ही बसा लेना॥
दिल से जब दिल मिले बस एक बार पुचकार दो॥
Comments
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर