Skip to main content

डर त्रासदी का नहीं, भरोसा उठ जाने का है


श्रवण गर्ग

bhaskarभोपाल गैस त्रासदी को लेकर अदालत द्वारा सोमवार को दिए गए फैसले के बाद से नई दिल्ली स्थित सत्ता के गलियारों में सांसें उखड़ी हुई हैं। फैसले के बाद चिंता इस बात को लेकर शायद कम है कि त्रासदी के कोई 25 वर्षो के बाद भी शारीरिक यातनाएं भुगत रहे लाखों बाशिंदों या कि उन हजारों लोगों के परिवारों के साथ, जिनकी जानें चली गई थीं, घोर अन्याय हुआ है। ज्यादा चिंता फैसले के कारण उपजने वाले राजनीतिक परिणामों, जिनमें कि बहुचर्चित एटमी जनदायित्व बिल का भविष्य भी शामिल है, को लेकर है। 25 वर्षो में भोपाल और दिल्ली में कई सरकारें आईं और चली गईं पर दोषियों को सजा दिलाने या वारेन एंडरसन को पकड़कर भारत लाने की मांग को लेकर समूची लड़ाई गैस पीड़ित और कुछ संगठन ही लड़ते रहे, सरकारें तो बस मंत्रालयों से आश्वासन लीक करती रहीं। भोपाल की त्रासदी न तो हिरोशिमा और नागासाकी की तर्ज पर राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में प्रामाणिकता के साथ शुमार हो पाई और न ही पीड़ितों के प्रति सहायता और सहानुभूति के दरवाजे कभी पूरी तरह से खुले पाए गए।

bhaskarसमूचे देश को पहले तो वर्षो तक बोफोर्स कांड में व्यस्त रखा गया और जनता को क्वात्रोक्कि के प्रत्यर्पण के झांसे दे-देकर मूर्ख बनाया गया और अब हेडली से पूछताछ को लेकर एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जो सालों-साल चलेगा और जिसके परिणाम भी धीमी गति के समाचार बुलेटिनों की तरह ही प्राप्त होते रहेंगे। भोपाल अदालत के फैसले के बाद खुलासे हो रहे हैं कि किस तरह से तत्कालीन नरसिंह राव सरकार द्वारा अप्रैल,1994 में केंद्रीय जांच ब्यूरो पर दबाव बनाया गया कि वह एंडरसन के प्रत्यर्पण की कार्रवाई के लिए ज्यादा जोर नहीं डाले। और इसके भी दस साल पहले ७ दिसंबर,१९८४ को किस तरह से वारेन एंडरसन को मुंबई से भोपाल ‘आमंत्रित’ कर पहले तो उसकी औपचारिक गिरफ्तारी जाहिर की गई और फिर कुछ ही घंटों बाद तत्कालीन चीफ सेकेट्ररी द्वारा त्रासदी के रचनाकार को ‘ससम्मान’ जमानत पर रिहा करवाने के आदेश संबंधित अधिकारियों को दिए गए। त्रासदी के दोषी केवल वे आठ (या एंडरसन जिसका कि भोपाल की अदालत द्वारा दिए गए फैसले में उल्लेख तक नहीं है) ही नहीं हैं। जिनके बारे में निर्णय सुनाया गया है, वे तमाम लोग भी हैं जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपराधियों की मदद करने में कोई कोताही नहीं बरती।

विधि मंत्री वीरप्पा मोइली का कहना है कि एंडरसन के खिलाफ गैस त्रासदी संबंधी मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। मोइली के कथन से न तो नब्बे साल की उम्र के करीब पहुंच रहे वारेन एंडरसन की सेहत पर कोई फर्क पड़ता है और न ही एक-चौथाई शताब्दी के बाद भी त्रासदी की शारीरिक और मानसिक यंत्रणाएं भुगत रहे भोपाल के लाखों बाशिंदों के स्वास्थ्य पर। सरकार का यह कदम भी पूरे मामले को नौकरशाही के ठंडे बस्ते में सरका देने से ज्यादा अहमियत नहीं रखता कि इतनी बड़ी त्रासदी को लेकर आगे की कार्रवाई पर विचार के लिए मंत्रियों का एक समूह गठित कर दिया गया है। केंद्र सरकार की झोली में पहले से ही ऐसे कई मसले जमा हो चुके हैं जिन पर फैसलों के लिए मंत्रियों के समूह काम कर रहे हैं। हकीकत तो यह है कि अपनी हिफाजत को लेकर नागरिकों में उनके ही द्वारा चुनी जाने वाली सरकारों के प्रति भरोसा लगातार कम होता जा रहा है। पर इस त्रासदी का कोई इलाज भी नहीं है और उसकी किसी भी अदालत में सुनवाई भी नहीं हो सकती कि सरकारों को अपने प्रति कम होते जनता के यकीन को लेकर कौड़ी भर चिंता नहीं है। जनता पर राज करने वालों को पता है कि उन्हें न तो भगोड़ा करार दिया जा सकता है और न ही उनके खिलाफ कोई अपराध कायम किया जा सकता है। वारेन एंडरसन को भोपाल छोड़ने के लिए आखिरकार सरकारी विमान ही तो उपलब्ध कराया गया था। देश पूरी फिक्र के साथ किसी नई त्रासदी की प्रतीक्षा अवश्य कर सकता है।
share

Comments

  1. यह एक ऐसा दर्द है जो कभी भी हल्का न होगा...
    हमेशा इन आँखों से आंसू रिश्ते रहेंगे............!!

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा