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लो क सं घ र्ष !: सुन मानस स्वर का क्रंदन....


नव पिंगल पराग शतदल,
आशा विराग अभिनन्दन।
नीरवते कारा तोड़ो,
सुन मानस स्वर का क्रंदन॥

माया दिनकर आच्छादित,
अन्तस अवशेष तपोवन।
मानो निर्धन काया का ,
अनुसरण अधीर प्रलोभन॥

ये उल्लास मौन आसक्ति
भ्रम जीवन दीन अधीर।
सुख वैभव प्रकृति त्यागे,
मन चाहे कृतिमय नीर॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

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ग़ज़ल

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