सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
इमरान हाशमी का आरोप है कि की मुंबई की एक हाउसिंग सोसायटी ने उसे इसलिए मकान नहीं दिया कि वह मुसलमान हैं। इस पर तर्रा यह कि अब इमरान हाशमी के खिलाफ ही कानूनी कार्यवाई की जा रही है। इमरान हाशमी प्रकरण के बहाने इस बहस को फिर से चर्चा में ला दिया है कि क्या भारत में मुसलमानों के साथ पक्षपात होता है। अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि हां, भारत में मुसलमानों के साथ पक्षपात होता है। मैं खुद इसका भुक्तभोगी हूं। अब से लगभग चार साल पहले मेरठ के एक कॉम्प्लेक्स में मुझे ऑफिस बनाने के लिए दुकान किराए पर इसलिए नहीं दी गयी थी क्योंकि मेरा नाम सलीम अख्तर सिददीकी था। हालांकि दुकान मालिक से सभी बातें तय हो गयीं थी, लेकिन जब एग्रीमेंट के लिए नाम और पता लिखा जाने लगा तो दुकान मालिक के रवैये में फौरन बदलाव आ गया। वह कहने लगा कि मैं अपने बेटे से सलाह कर लूं हो सकता है कि उसने किसी और से बात कर ली हो। मैं समझ चुका था क्या हो गया है। मैं दोबारा पलट कर वहां नहीं गया। लेकिन सुखद बात यह रही कि दूसरी जगह एक हिन्दू ने यह कहकर मुझे अपनी दुकान फौरन दे दी कि मुझे हिन्दु-मुसलमान से कोई फर्क नहीं पड़ता। हालांकि यह छोटी -छोटी बातें हैं, लेकिन दिल का ठेस तो पहुंचाती ही हैं। बात सिर्फ मकान या दुकान की ही नहीं है। सरकारी नौकरियों में पक्षपात किया जाता है। सरकारी विभागों में मुसलमानों का काम जल्दी से नहीं हो पाता। हां, रिश्वत देकर जरुर हो जाता है। कई बैंकों ने अलिखित रुप से नियम बना रखा है कि मुसलमानों को कर्ज नहीं देना है। देहरादून में गांधी रोड पर एक जैन धर्मशाला है। उसके नोटिस बोर्ड पर साफ लिखा है कि किसी गैर हिन्दू को कमरा नहीं दिया जाएगा।
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच चल रहा था। मैं अपने कुछ हिन्दु दोस्तों के साथ मैच देख रहा था। मैच बहुत ही रोमांचक हो चला था। पाकिस्तान को हिन्दुस्तान ने शिकस्त दे दी थी। हिन्दुस्तान के मैच जीतते ही सभी के साथ मैं भी उछल पड़ा। सभी ने मुझे ऐसे देखा, जैसे अजूबे हो गया हो। एक ने कटाक्ष किया सलीम तुझे तो इस बात का गम मनाना चाहिए कि पाकिस्तान हार गया है। यानि ऐसा मान लिया गया है कि हिन्दुस्तान का हर मुसलमान पाकिस्तान परस्त ही हो सकता है। देश में कुछ फिरकापरस्त लोगों ने खेल के मैदान को भी जंग का मैदान बना दिया है। मुसलमान से यह उम्मीद रखी जाती है कि सचिन के आउट होने पर उन्हें अपनी रोनी सूरत ही बनानी है। आफरीदी की जिस उम्दा गेंद पर सचिन आउट हुआ है, उस गेंद की तारीफ करना मुसलमान के लिए देशद्रोह से कम नहीं है। आखिर ऐसा क्यों है कि एक भारतीय मुसलमान एक अच्छे खेलने वाले पाकिस्तानी खिलाड़ी की तारीफ नहीं कर सकता ?
आजादी के बाद बदतरीन मुसलिम विरोधी दंगों के जिम्मेदारों को आज तक सजा नहीं दी गयी। दंगों के दौरान मरता भी मुसलमान है। मुसलमानों के घरों को आग लगा दी जाती है। उसके बाद गिरफतार भी मुसलमानों को ही किया जाता है। शोर शराबा होने पर इतना जरुर होता है कि न्यायिक जांच आयोग का झुनझुना मुसलमानों को पकड़ा दिया जाता है। सालों साल जांच के नाम पर ड्रामा होता है। रिपोर्ट आती है तो उस पर कभी अमल नहीं होता । 1993 के मुंबई बम धमाकों के कसूर वारों को तो सजा सुना दी गयी, लेकिन बाबरी मस्जिद का ध्वस्त होने के बाद मुंबई के मुस्लिम विरोधी दंगों के कसूरवार आज भी खुलेआम घूम रहे हैं। क्या ये मुसलमानों के साथ ज्यादती नहीं है ? 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा से 44 मुसलमानों को एक ट्रक में भरकर मुरादनगर की गंगनहर पर ले जाकर गोलियों से भून कर नहर में बहा दिया जाता है। लेकिन जिम्मेदार पीएसी के अफसर न सिर्फ आराम के नौकरी करते हैं, बल्कि उनका प्रमोशन भी कर दिया जाता है। गुजरात में एक मुख्यमंत्री की शह पर मुसलमानों का कत्लेआम होता है और वह मुख्यमंत्री बना रहकर पीड़ितों को धमका कर जांच को प्रभावित भी करता है। ये तो मात्र कुछ उहारण हैं, वरना मुसलमानों के कत्लेआम का सिलसिला बहुत लम्बा है।
बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। मुसलमानों के बारे में ऐसे-ऐसे मिथक गढ़ दिए गए हैं, जो सच लगने लगे हैं। मसलन, मुसलमान गंदे होते हैं। जालिम होते हैं, आतंकवादी होते हैं। इनके मौहल्लों में नहीं जाना चाहिए, ये लोग हिन्दुओं को काटकर फेंक देते हैं। मुसलमान बिजली की चोरी करते हैं। चोर उच्चके होते हैं। क्या वास्तव में ऐसा है ? यह सही है कि मुसलिम मौहल्ले गंदे होते हैं। लेकिन इसका कसूरवार कौन है ? कसूरवार वे नगर निकाय हैं, जिनके सफाई कर्मचारी सालों साल भी मुस्लिम मौहल्लों की सुध नहीं लेते। वे जाना भी नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें पता है कि मुसलमानों की सुनता कौन है। और फिर उनके दिल में यह बैठा रखा है कि मुसलमान जालिम होते हैं, काट कर फेंक देते हैं। कर्मचारी यही बहाना बना कर ऐश की काटते हैं। पाश कालोनियां, जो अधिकतर हिन्दुओं की होती हैं, चमचमाती रहती हैं। उन कालोनियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। अच्छी भली सड़क को दोबारा बना दिया जाता है। मुसलिम मौहल्लों की सड़कों की हालत हमेशा ही खस्ता रहती है। पॉश कही जानी वाली कालोनियों में भले ही चोरी की बिजली से एसी चलाए जाते हों, लेकिन बिजली चोर का तमगा मुसलमानों पर लगा दिया गया है।
चोर उच्च्के किस धर्म या जाति में नहीं होते हैं। अधिकतर चेन लुटेरे मुसलमान नहीं, दूसरे लोग होते हैं। यदि कोई मुसलमाना साइकिल चुराता हुआ पकड़ा जाता है तो उसकी जमकर पिटाई होती है। यदि चोर हिन्दू है तो उसको दो-चार थप्पड़ मारकर छोड़ दिया जाता है। नकली घी और दवाईयां, बनाने वाले, बड़े घोटाले करने वाले, मिलावटी सामान बेचने वालों की संख्या मुसलमानों से कहीं ज्यादा गैर मुंस्लिमों की होती है। पकड़े जाने पर इनको कोई कुछ नहीं कहता क्योंकि उस पर व्यापारी होने का लाइसेंस होता है। यह तो अच्छा है कि पक्षपात के चलते सरकारी नौकरियों में मुसलमानों का प्रतिशत नगण्य है, वरना भ्रष्टाचार का ठीकरा भी मुसलामानों के सिर पर ही फोड़ा जाता।
अब सवाल है कि पक्षपात कहां नहीं होता ? भारत में ही दलितों को हमेशा हाशिए पर डाले रखा गया। मुंबई में उत्तर भारतीयों को हिकारत की नजर से देखा जाता है। बाल ठाकरे की शिवसेना तो मुसलमानों को हरे सांप कहती है। शहरों में कई कालोनियां ऐसी होती हैं, जो विशेष जाति की होती हैं। मसलन, वैश्यों की कालोनी में किसी गैर वैश्य को प्लॉट या मकान नहीं दिया जाता। सरकारी नौकरियों में हमेशा से ही अलिखित रुप से ब्र्राहमणों का आरक्षण रहा। जिस गांव में जिस जाति का प्रभाव होता है, उस गांव में दूसरी जातियों के साथ भेदभाव होता है। हिन्दुस्तान का तो मुझे पता नहीं, पाकिस्तान में शिया सुन्नियों को मकान किराए पर नहीं देते तो सुन्नी शियाओं को। पाकिस्तान के शहर कराची के एफबी एरिया में ब्लॉक 20 शिया बहुल है तो उसके सामने ब्लॉक 17 सुन्नी बहुल है। दोनों ब्लॉकों को एक सड़क अलग करती है। वो सड़क जैसे सरहद का काम करती है। मैंने कुछ वक्त कराची में गुजारा है। ब्लॉक 17 में मेरे मामू रहते हैं। वहां रहते हुए कुछ शिया मेरे बहुत अजीत दोस्त बन गए थे। मेरे रिश्तेदारों को इस बात पर ही ऐतराज होने लगा था कि मेरे दोस्त शिया क्यों है। मुझे कहा गया कि श्यिा लोग अच्छे नहीं होते। सुन्न्यिों को जो कुछ खाने को देते हैं, उसमें पहले थूक देते हैं। मुझे शियाओं से कभी कोई परेशानी नहीं हुई। पाकिस्तान में महाजिरों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया है। इराक में कुर्दों के साथ क्या कुछ नहीं हुआ। अपने आप को सभ्य कहने वाले यूरोपियन मुल्कों में अश्वेत लोगों के साथ भेदभाव आम बात है। आस्टे्रलिया मे तो भारतीय छात्रों के साथ ज्यादती कल की ही बात है। इसलिए इमरान हाशमी साहब ऐसा होता है। ऐसी बातों को दिल पर नहीं लेना चाहिए। कहीं न कहीं कोई न कोई भेदभाव का शिकार हो रहा है और होता रहेगा।
इमरान हाशमी का आरोप है कि की मुंबई की एक हाउसिंग सोसायटी ने उसे इसलिए मकान नहीं दिया कि वह मुसलमान हैं। इस पर तर्रा यह कि अब इमरान हाशमी के खिलाफ ही कानूनी कार्यवाई की जा रही है। इमरान हाशमी प्रकरण के बहाने इस बहस को फिर से चर्चा में ला दिया है कि क्या भारत में मुसलमानों के साथ पक्षपात होता है। अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि हां, भारत में मुसलमानों के साथ पक्षपात होता है। मैं खुद इसका भुक्तभोगी हूं। अब से लगभग चार साल पहले मेरठ के एक कॉम्प्लेक्स में मुझे ऑफिस बनाने के लिए दुकान किराए पर इसलिए नहीं दी गयी थी क्योंकि मेरा नाम सलीम अख्तर सिददीकी था। हालांकि दुकान मालिक से सभी बातें तय हो गयीं थी, लेकिन जब एग्रीमेंट के लिए नाम और पता लिखा जाने लगा तो दुकान मालिक के रवैये में फौरन बदलाव आ गया। वह कहने लगा कि मैं अपने बेटे से सलाह कर लूं हो सकता है कि उसने किसी और से बात कर ली हो। मैं समझ चुका था क्या हो गया है। मैं दोबारा पलट कर वहां नहीं गया। लेकिन सुखद बात यह रही कि दूसरी जगह एक हिन्दू ने यह कहकर मुझे अपनी दुकान फौरन दे दी कि मुझे हिन्दु-मुसलमान से कोई फर्क नहीं पड़ता। हालांकि यह छोटी -छोटी बातें हैं, लेकिन दिल का ठेस तो पहुंचाती ही हैं। बात सिर्फ मकान या दुकान की ही नहीं है। सरकारी नौकरियों में पक्षपात किया जाता है। सरकारी विभागों में मुसलमानों का काम जल्दी से नहीं हो पाता। हां, रिश्वत देकर जरुर हो जाता है। कई बैंकों ने अलिखित रुप से नियम बना रखा है कि मुसलमानों को कर्ज नहीं देना है। देहरादून में गांधी रोड पर एक जैन धर्मशाला है। उसके नोटिस बोर्ड पर साफ लिखा है कि किसी गैर हिन्दू को कमरा नहीं दिया जाएगा।
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच चल रहा था। मैं अपने कुछ हिन्दु दोस्तों के साथ मैच देख रहा था। मैच बहुत ही रोमांचक हो चला था। पाकिस्तान को हिन्दुस्तान ने शिकस्त दे दी थी। हिन्दुस्तान के मैच जीतते ही सभी के साथ मैं भी उछल पड़ा। सभी ने मुझे ऐसे देखा, जैसे अजूबे हो गया हो। एक ने कटाक्ष किया सलीम तुझे तो इस बात का गम मनाना चाहिए कि पाकिस्तान हार गया है। यानि ऐसा मान लिया गया है कि हिन्दुस्तान का हर मुसलमान पाकिस्तान परस्त ही हो सकता है। देश में कुछ फिरकापरस्त लोगों ने खेल के मैदान को भी जंग का मैदान बना दिया है। मुसलमान से यह उम्मीद रखी जाती है कि सचिन के आउट होने पर उन्हें अपनी रोनी सूरत ही बनानी है। आफरीदी की जिस उम्दा गेंद पर सचिन आउट हुआ है, उस गेंद की तारीफ करना मुसलमान के लिए देशद्रोह से कम नहीं है। आखिर ऐसा क्यों है कि एक भारतीय मुसलमान एक अच्छे खेलने वाले पाकिस्तानी खिलाड़ी की तारीफ नहीं कर सकता ?
आजादी के बाद बदतरीन मुसलिम विरोधी दंगों के जिम्मेदारों को आज तक सजा नहीं दी गयी। दंगों के दौरान मरता भी मुसलमान है। मुसलमानों के घरों को आग लगा दी जाती है। उसके बाद गिरफतार भी मुसलमानों को ही किया जाता है। शोर शराबा होने पर इतना जरुर होता है कि न्यायिक जांच आयोग का झुनझुना मुसलमानों को पकड़ा दिया जाता है। सालों साल जांच के नाम पर ड्रामा होता है। रिपोर्ट आती है तो उस पर कभी अमल नहीं होता । 1993 के मुंबई बम धमाकों के कसूर वारों को तो सजा सुना दी गयी, लेकिन बाबरी मस्जिद का ध्वस्त होने के बाद मुंबई के मुस्लिम विरोधी दंगों के कसूरवार आज भी खुलेआम घूम रहे हैं। क्या ये मुसलमानों के साथ ज्यादती नहीं है ? 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा से 44 मुसलमानों को एक ट्रक में भरकर मुरादनगर की गंगनहर पर ले जाकर गोलियों से भून कर नहर में बहा दिया जाता है। लेकिन जिम्मेदार पीएसी के अफसर न सिर्फ आराम के नौकरी करते हैं, बल्कि उनका प्रमोशन भी कर दिया जाता है। गुजरात में एक मुख्यमंत्री की शह पर मुसलमानों का कत्लेआम होता है और वह मुख्यमंत्री बना रहकर पीड़ितों को धमका कर जांच को प्रभावित भी करता है। ये तो मात्र कुछ उहारण हैं, वरना मुसलमानों के कत्लेआम का सिलसिला बहुत लम्बा है।
बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। मुसलमानों के बारे में ऐसे-ऐसे मिथक गढ़ दिए गए हैं, जो सच लगने लगे हैं। मसलन, मुसलमान गंदे होते हैं। जालिम होते हैं, आतंकवादी होते हैं। इनके मौहल्लों में नहीं जाना चाहिए, ये लोग हिन्दुओं को काटकर फेंक देते हैं। मुसलमान बिजली की चोरी करते हैं। चोर उच्चके होते हैं। क्या वास्तव में ऐसा है ? यह सही है कि मुसलिम मौहल्ले गंदे होते हैं। लेकिन इसका कसूरवार कौन है ? कसूरवार वे नगर निकाय हैं, जिनके सफाई कर्मचारी सालों साल भी मुस्लिम मौहल्लों की सुध नहीं लेते। वे जाना भी नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें पता है कि मुसलमानों की सुनता कौन है। और फिर उनके दिल में यह बैठा रखा है कि मुसलमान जालिम होते हैं, काट कर फेंक देते हैं। कर्मचारी यही बहाना बना कर ऐश की काटते हैं। पाश कालोनियां, जो अधिकतर हिन्दुओं की होती हैं, चमचमाती रहती हैं। उन कालोनियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। अच्छी भली सड़क को दोबारा बना दिया जाता है। मुसलिम मौहल्लों की सड़कों की हालत हमेशा ही खस्ता रहती है। पॉश कही जानी वाली कालोनियों में भले ही चोरी की बिजली से एसी चलाए जाते हों, लेकिन बिजली चोर का तमगा मुसलमानों पर लगा दिया गया है।
चोर उच्च्के किस धर्म या जाति में नहीं होते हैं। अधिकतर चेन लुटेरे मुसलमान नहीं, दूसरे लोग होते हैं। यदि कोई मुसलमाना साइकिल चुराता हुआ पकड़ा जाता है तो उसकी जमकर पिटाई होती है। यदि चोर हिन्दू है तो उसको दो-चार थप्पड़ मारकर छोड़ दिया जाता है। नकली घी और दवाईयां, बनाने वाले, बड़े घोटाले करने वाले, मिलावटी सामान बेचने वालों की संख्या मुसलमानों से कहीं ज्यादा गैर मुंस्लिमों की होती है। पकड़े जाने पर इनको कोई कुछ नहीं कहता क्योंकि उस पर व्यापारी होने का लाइसेंस होता है। यह तो अच्छा है कि पक्षपात के चलते सरकारी नौकरियों में मुसलमानों का प्रतिशत नगण्य है, वरना भ्रष्टाचार का ठीकरा भी मुसलामानों के सिर पर ही फोड़ा जाता।
अब सवाल है कि पक्षपात कहां नहीं होता ? भारत में ही दलितों को हमेशा हाशिए पर डाले रखा गया। मुंबई में उत्तर भारतीयों को हिकारत की नजर से देखा जाता है। बाल ठाकरे की शिवसेना तो मुसलमानों को हरे सांप कहती है। शहरों में कई कालोनियां ऐसी होती हैं, जो विशेष जाति की होती हैं। मसलन, वैश्यों की कालोनी में किसी गैर वैश्य को प्लॉट या मकान नहीं दिया जाता। सरकारी नौकरियों में हमेशा से ही अलिखित रुप से ब्र्राहमणों का आरक्षण रहा। जिस गांव में जिस जाति का प्रभाव होता है, उस गांव में दूसरी जातियों के साथ भेदभाव होता है। हिन्दुस्तान का तो मुझे पता नहीं, पाकिस्तान में शिया सुन्नियों को मकान किराए पर नहीं देते तो सुन्नी शियाओं को। पाकिस्तान के शहर कराची के एफबी एरिया में ब्लॉक 20 शिया बहुल है तो उसके सामने ब्लॉक 17 सुन्नी बहुल है। दोनों ब्लॉकों को एक सड़क अलग करती है। वो सड़क जैसे सरहद का काम करती है। मैंने कुछ वक्त कराची में गुजारा है। ब्लॉक 17 में मेरे मामू रहते हैं। वहां रहते हुए कुछ शिया मेरे बहुत अजीत दोस्त बन गए थे। मेरे रिश्तेदारों को इस बात पर ही ऐतराज होने लगा था कि मेरे दोस्त शिया क्यों है। मुझे कहा गया कि श्यिा लोग अच्छे नहीं होते। सुन्न्यिों को जो कुछ खाने को देते हैं, उसमें पहले थूक देते हैं। मुझे शियाओं से कभी कोई परेशानी नहीं हुई। पाकिस्तान में महाजिरों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया है। इराक में कुर्दों के साथ क्या कुछ नहीं हुआ। अपने आप को सभ्य कहने वाले यूरोपियन मुल्कों में अश्वेत लोगों के साथ भेदभाव आम बात है। आस्टे्रलिया मे तो भारतीय छात्रों के साथ ज्यादती कल की ही बात है। इसलिए इमरान हाशमी साहब ऐसा होता है। ऐसी बातों को दिल पर नहीं लेना चाहिए। कहीं न कहीं कोई न कोई भेदभाव का शिकार हो रहा है और होता रहेगा।
saleem ji hum aapse bilkul sahmat hai
ReplyDeleteyeh baat deegar hai ki hindustan democratic ke
liye jaana jaata hai but kahi kahi hamare means musalmano ke sath partiality hoti zarur hai ...so sabhi logo ko dikhai deti hai
bilkul trasparent ki trah ....is baat par mulk ki hukoomat ko sochna chahiye...bahut bada issue hai lekin kiske pas itna waqt hai ...
अगर यहाँ पक्षपात होता तो कब का अफजल गुरु और अजमल कसब सूली पे चढा दिए जाते ............ पक्षपात नहीं होता ........ इमरान हाशमी i को केवल चीप पब्लिसिटी चाहिए ........ अब आपको कोई पूरा हिन्दुस्तान तो गिफ्ट नहीं कर सकता न .........
ReplyDeleteहुकूमत कहां तक सोचे? जैसा सलीम ने लिखा है-पक्षपात कहां व कब नहीं होता-यह जनता को खुद ही सोचना होगा,कि कहां व क्या ,किसमें कमी है, कैसे निवारण किया जाय. हुकूमत ने तो कानून बना रखा है।
ReplyDeletemain aapki baaton se ratti bhar bhi sehmat nahi hoon. dil par haath rakhkar kya aap yeh baat dobaaraa dohraa sakte hain?????????
ReplyDeletedost aak machli pure tallab ko gandha kar deti hai dehradun mai jain dhramshala mai yeh lika hai Teek hai but eak din mai akbaar pad raha tha to main pada ki eak Muslim ne eak mandier ke Pujarri ko Jabardasti Islaam Kabool karne ke liya peeta. main computer course karta tha eak muslim ladka jo mula building mai rahta tha mujhe India ke pakistan se match haar jaane par ye kahkar chidane laaga ki Kal hammare pakistaan ne India ko hara diya. eak baar mai Do muslim logon ka saath tha eak mujhese match ki wajhe se jhagda karne laga to maine kha yaar tera desh to Bhart hai To tu Bhart ki burai kisliya kar raha hai. he said that Muslim hamaari com hai Isliya mai pakistaan ki Taarife kar raha hu. Do little children who is studing in primery they is talking about the war of pakistan and India after Mumbai attack aagar pakistan aur Bhart ka war hota hai to Pakistan Bhart ko war mai hara dega. Bhart pakistan ke samcha war mai nahi Tik sakta. eak primeriy mai padne wala children ko Yeh baat kaise pata. theri parents give him like this sanskar. ab aap kya khoge aase logo ke barre ma
ReplyDeletesaleem Bhart ne muslimo ko others desho ki tulna mai बढ़िया jeevan diya hai Tab bhi Tum bhart se santust nahi ho to Tumahara kya kiya ja sakta hai Tum khana chata ho ki Bhart muslmanno par atyachar kar raha hai. Zara china pakistaan afganistan and others country mai dekho muslimo ki hallat kharab ho chki hai
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