हमारी जान मुसीबत में डाल देते है
हमें हमारे वतन से निकाल देते हैधमाके आप अंधेरो में कर गुजरते है
उजाले नाम हमारा उछाल देते है
बेखौफ़ घर से निकले सलामत ही घर में आएं
बच्चे बुरी बालाओं से हम सबके बच ही जाएं
दीवार गिर रही है अगर जुल्म की तो 'सै़फ़'
इंसानियत के जितने भी दुश्मन है दब ही जाएं
xxx-----xxx-----xxx-----xxx---xxx
ग़ज़ल
फिर तड़प के करार लिखना है
इश्क़ लिखना है प्यार लिखना है
ज़हर का है असर फिज़ाओ में
और हम को बहार लिखना है
लेके सर आ गए है मकतल में
दोस्तों की ये हार लिखना है
ज़िंदगी का मुतालबा देखो
ज़िंदगी को भी यार लिखना है
'सै़फ़' चल-चल के थक गए हैं हम
अब सुकूं और क़रार लिखना है
मोहम्मद सैफ बाबर
मोबाइल -09936008545
Comments
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर